राजनीति की धारा !(कविता) प्रसिद्ध यादव शेयर करें।
बाबूचक, पटना,बिहार।
राजनीति की धारा
कोई पार उतरा
कोई लगा किनारा।
कोई डूबे बीच मंझधार।
किसी की टूट गयी पतवार।
किसी की नैया में हुई सूराख़।
कोई नही बचाया साख।
किसी के धोखा दिया मांझी।
किसी को डुबोया आँधी।
कोई बहती धार में बहा।
कोई लहरों से टकराया ।
कोई खाते रहे थपेड़े ।
कोई चुनते रहे मोती।
कोई लगा के जुगाड़।
हो गया पार।
रह गया मल्लाह ।
नाव पर ही सवार।
पता नही फिर।
कब होंगे दीदार।
जिन्हें किये थे पार।
कोई श्री राम नही
जो रखे याद।
फिरत करे संवाद।
जो एकबार पार हो जाये।
सात पीढ़ी धन्य हो जाये ।
ताकते रह गए खेवनहार।
-प्रसिद्ध यादव।
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