अच्छे दिन में डिरेल होती रेल !प्रसिद्ध यादव।शेयर करें।
बाबूचक, पटना,बिहार।
निजीकरण ने किया बंटाधार।
अच्छे दिनों के दिवास्वप्न में डिरेल होती रेल!
कभी भारतीय रेल की सवारी सबसे सुगम और सस्ता हुआ करती थी।देश की सबसे बड़ी नियोक्ता सरकारी उपक्रम थी।यह देश की लाईफ लाइन कही जाती थी।एक चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी भी इसमें काम करने पर अपना सौभाग्य समझते थे।कर्मचारी से लेकर उनके परिजनों की यात्रा,चिकित्सा आवास शिक्षा आदि की जिम्मेवारी रेलवे उठाती थी। कर्मचारियों और रेलवे में चोली दामन के सम्बंध रहते थे।समय बदला और रेलवे पर भी अच्छे दिन के ग्रहण लगने लगे।स्टेशन, रेल गाड़ियां भी निजी हाथों में जाने लगी।रेल कर्मचारी के ऊपर छंटनी के बादल मंडराने लगे।इस साल मार्च से अगस्त तक 42.3 फीसदी यातायात राजस्व घट गया है।रेलवे को पेंशन और अन्य मदों में पैसों की कमी होने लगी है।अब जो लोग स्टेशन पर आएंगे ,उनसे यूजर चार्ज लिया जाएगा।यह रेल टिकट के साथ प्लेटफार्म टिकट पर भी होंगे जो 10 रुपये से लेकर 50 रुपये तक होंगे।गाड़ियों के नम्बर के आगे 0 लगाकर स्पेशल ट्रेन,प्रीमियम ट्रेन की शुल्क अलग से ली जा रही है।ये सारे बोझ यात्रियों के सर पर होगी।इतना होने के बावजूद रेलवे सिकुड़ती जा रही है।रेलवे के अलग से बजट के प्रवधान पहले ही खत्म हो गया,पेंशन की समाप्ति अटल युग में ही हो गया था।रेलवे न केवल भारत के विकास को ही बढ़ावा दिया था बल्कि देश के चारों दिशाओं को जोड़ने का काम किया था।यह देश को मधु दंडवते,जॉर्ज फर्नांडिस जैसे क्रांतिकारी नेता को दिया था जो रेल के आंदोलन करते -करते रेल मंत्री के पद पर काबिज भी हुए थे।अब निजीकरण से रेलवे कितना फलताफुलता है भविष्य के गर्भ में है।प्रसिद्ध यादव।
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