युद्ध अन्तःपुर की! हास्य व्यंग्य।प्रसिद्ध यादव।
बाबूचक, पटना।
बुरे फंसे पिलर!
सोचा की चलें मुरेठा जी के यहां ख़ातिर होगी।पदवी जो जिला पार्षद का है।जैसे ही मुरेठा जी के दर पर दस्तक दिये, उधर से मुरेठी की आवाज आई।आज कोई से नही मिलेंगे,न बात करेंगे। मुरेठीपति बगल में खड़े थे,सामाजिक और मस्त आदमी हैं,भगवान की कृपा से हरदम मस्त भी रहते हैं वो पार्षद को बुला कर बैठा दिया।इसके बाद कपल मुरेठी और मुरेठा जी चपल जंग करने लगे।पार्षद जी के मजबूत काया घायल होने से बचा दिया।इसके बाद शुरू हो गया वक्य्युद्ध। चरित्र पर कीचड़ उछलने लगा।गर्व से दोनों कहने लगे हम तुमसे बीस हैं,तभी तो खीस है।तुलसीदास जी की एक चौपाई याद आ गयी-घन, घमण्ड नभ गर्जत घोड़ा,प्रिय विहीन डरपत मन मोरा'!ऐसे भी कलियुग की माया है,जो जितना पतीत, वो उतना पावन। रघुपति राघव राजाराम।ये अन्तःपुर की बात को कोई कैसे जान सकता है,जब कि बात बाहर आई ही नहीं।दीवारों के भी कान होते हैं।खैर,अभी कोरोना काल है,कोई काम नही है,टाइम पास करने के लिये दूसरे के गार्डेन में चल ही गये तब क्या हुआ?फूल सुरक्षित है,देखने का नजरिया अलग है।यही से चरित्रवान लोगों पर बेवजह शक करते हैं।फैशन की दौड़ में गारंटी की उम्मीद नही करें" कहीं कपड़े के दुकान पर लिखा देखा।सोचा आपलोगों को भी बता दूं।बस इतनी सी बात है। नोट- यह कहानी कल्पकनिक है।अगर किसी से मैच करे तब यह मेरी जिम्मेदारी नही होगी।
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