टूटते सांस, छूटते साथ! प्रसिद्ध यादव।
प्राण वायु ऑक्सीजं के अभाव में लाशों के मुकाबले शमशान कम पड़ रहे हैं, परिजनों को 20 - 22 घंटे इंतजार करना पड़ रहा है। एक एक एंबुलेंस में 20 -20 लाशें ढोये जा रहे हैं। जिंदा में तो अस्पताल, ऑक्सीजं मिलने से रहा, कम से कम अंतिम संस्कार सम्मान से होना चाहिए। सरकार की कोरोना से लड़ने की क्या तैयारी थी, देश को बताना चाहिए। अभी देश में चार गुणा अधिक ऑक्सीजं की जरूरत है, जिसकी आपूर्ति करना असम्भव है डब्लू एच ओ ने कहा है की भारत की स्थिति दिल तोड़ने से भी कही अधिक बुरी है। अभी देश में करीब 500 ऑक्सीजं की उद्योग है और रातोरात उत्पादन बढ़ना नामुमकिन है। सरकार को डेढ़ साल का मौका मिला था, लेकिन सरकार की निकम्मेपन से, लोग हाँफ रहे हैं, कांप रहे हैं। समूचा तंत्र चरमरा गया है। अभी देश में 15 फ़ीसदी ऑक्सीजं चिकित्सा के लिए और 85 फ़ीसदी उत्पादन होता है। तरल ऑक्सीजं को ले जाने के लिए क्रयोनिक टैंकर् की जरूरत पड़ती है क्योंकि यह काफी ज्वालनशील होती है। अगर सरकार को कोरोना की दूसरी लहर की अंदेशा होती तब समय रहते जरूर तैयारी करती, लेकिन यहाँ तो कुंभ स्नान, स्टेडियम, मूर्ति निर्माण और चुनाव पर ध्यान थी। अब भुक्तभोगी आमजन है।
प्रसिद्ध यादव।
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