आपदा में संवेदनशील और धैर्यवान बनें। प्रसिद्ध यादव।

 

कोरोना से एक बार फिर मानव के जीवन को झकझोर दिया है, एक डर पैदा कर दिया है और यही से शुरू हो जाती हैं तनाव, बात बात पर गुस्सा। क्यों न हम इस विषम परिस्थितियों में प्यार से मिलजुल कर रहे। प्यार, स्नेह, ममता में इतनी ताकत है कि असम्भव भी संभव हो जाता है, जैसे उफनाती दूध में कुछ पानी के बूंद डालने से। बेवजह किसी को चीढाने या दिल तोड़ देने से कोई बड़ा नही हो जाता। बड़े तो वो होते हैं, जिनमें अक्कड़ न हो, सही सलाह को माने, लेकिन मन में घमण्ड हो तब कैसे?  सभी जानते हैं की यहाँ से एकदिन सब को जाना है, वो भी खाली हाथ, छिनझप्टी क्यों? यह मानवीय गुण तो नही है। 

अपने आसपास नज़र रखें, किसी को जरूरत पड़े मदद करें। इस विपदा में बहुत अभवग्रस् लोग होंगे, दो रोटी कम खाकर दो रोटी भूखे को दे दें, कोई बीमार आदमी को दवा दिला दे, जान बच जायेगी। मैं पहले लोगों को बचाने के लिए अनेक बार हाथ फैलाया है और जान भी बची, दुआ देंगे लोग। 

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