झूठ की खेती से भला ,किसका भला? प्रसिद्ध यादव।

 


आदमी जितना महत्वाकांक्षी होते जाता है, अपना दिमाग उतना ही चलाते चला जाता है, और यही प्रवृत्ति झूठा बना देता है। सवाल है किस्से, किसके लिए झूठ। कभी कभी अपनी नाकामी को अपने पूर्वजों पर थोप देते हैं, और लोगों को विश्वास दिलाने में कामयब हो जाते हैं। झूठे बड़बोले होते हैं। झूठ बोलते समय हाथों के हावभाव गज़ब होते हैं, नाक खजुलाना, सर को पकड़ना, बोलते समय आँखें बंद कर लेना आदि लक्षण हैं। एक ने दूसरे को धमकी देते हुए बोला की इतना गोली चलेगी की लोग खोखे चुनकर  करोड़ पति बन जायेंगे। ऐसा सुनते होंगे। राजनीति में अगर यह गुण नही है, तब   कहीं गुजरा नही है। पहले सरकार अपनी उपलब्धि विज्ञापनों में देती थी, अब भी देती है यानी झूठ बोलने के लिए करोड़ों की स्वाहा, जैसे उत्पादन के विज्ञापन में  रामबं, अचुक इलयज् आदि, लेकिन इसकी पूरी विज्ञापन खबरों में होती है। यानी अब झूठे की और पर लग गयी है।अब लोकलुभावन विज्ञापन देखकर आदमी के सर चकरा जाता है, इसका निदान भी बता दिया है की '  जो दिखता है, वो बिकता है।"अब खबर को कोई झूठ नही मान सकता है। चुनाव के झूठे वादे होते हैं, लेकिन  काम की बात छोड़ दें, कोरोना से मरने वाले की संख्या में भी झूठ। कलियुग में अब झूठ कंठीमाला से लेकर  लंबी लंबी दाढ़ीयों में अपना बसेरा बना लिया है, मुल्ला से  से लेकर चर्च के फादर तक अपना डेरा डाल दिया है। भ्रष्टाचार की तरह झूठ शिष्टाचार बन गया है। विशेषज्ञों की मानें तो सच का सामना मयखाने में होती है, जहाँ बिना डर, भय, लोभ, लालच से निर्भीक होकर लोग बोलते हैं। अब पति पत्नी भी एक दूसरे की सच्चाई नही जान पाते हैं और सत्य पता करने के लिए चुपके से एक दूसरे का मोबाइल चेक करते हैं, लेकिन  डिटेल भी डिलीट कर दिया जाता है। झूठ की बुनियाद पर  बनी  घर की गारंटी  रेत की घरौंदा जितना टिकाऊ है। गैलैलियो, सुकरात, कबीर साहेब जैसे सच बोलने की साहस रखें। 

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