प्रलोभन में दिया गया एक वोट भी लोकतंत्र की हत्या है। प्रसिद्ध यादव

 


बिहार में पंचायत चुनाव की अधिसूचना जारी किया गया है।अनेक बहिरूपीये रंग बदल बदल कर जनता के सेवक और शुभचिंतक होने का स्वांग  रचेंगे। कोई ईमानदार, कर्मठ, विद्वान, समाज सेवक, विकास पुत्र, आपका लाल, निष्ठावान, प्रतिभावान आदि अनेक अलंकार अपने नामों के आगे पीछे लगाकर जनता के बीच  आएंगे, जनता को भ्रमायेंगे, लेकिन जनता ऐसे धूर्तों को झुब पहचानती है, क्योंकि वोटर और प्रत्याशी दोनो क्षेत्रीय होते हैं। जनता को उम्मीदवारों से सवाल पूछना चाहिय। मसलन आप ही को क्यों चुने? आपकी समाज में क्या योगदान है? जनता के प्रति कितने संवेदनशील है?आपकी शिक्षा क्या है? आप के विरुद्ध कितने केस मुक़दमे हैं? कितने लोगों को आपात स्थिति में मदद किये हैं? आप चुनाव लड़ना क्यों चाहते हैं? आदि सवाल जरूर पूछें।अगर अच्छा उम्मीदवार होगा संतोषजनक जवाब देगा और दागी भाग खड़ा होगा। अगर  निवर्तमान प्रतिनिधि उम्मीदवार मिलता है तब उसके विकास की योजनाओं के बारे में पूछे। विकास कार्य में वो कितना धन बनाया? कितने लोगों से मिलते जुलते रहे?  शराब बंदी के लिए क्या किया?,जनसरोकार के मुद्दे से कितने जुड़े रहे? आदि। ये हुई सैद्धांतिक बातें, लेकिन व्यवहार में  क्या होता है? कौन अधिक मालदार उम्मीदवार है? कौन अपने जाति का, अपने गांव, मोहल्ले का, वर्ग का, रिश्तेदार, गोतिया जैसे संकीर्ण सोच आ जाती है और अन्तोगत्वा वोट इसी धारा में पड़ जाती है।। अब ऐसे किसका भला होगा? एक परिपक्व मतदाता की भूमिका में आने की जरूरत है। निक्कम्मे, भ्रष्ट, दबंग, अपराधी छवि के लोगों को धूल चटाने की जरूरत है, तब हमारे गांधी जी के सपने स्वराज्य पूरे होंगे। पंचायती राज को सशक्त बनान है तब एक एक वोटर को अपनी विवेक से वोट देना होगा।

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