सरकार पूंजीवादियों की गोद में है! प्रसिद्ध यादव
जतीय जनगणना नहीं करवाने के पीछे सरकार की मंशा स्पष्ट है कि ये चाहती है कि देश में असमानता बढ़ती रहे। अभी हाल ही में यूपीएससी की अंतिम परिणाम में कोई खैनी बेचने वाले के, फेरी करने वाले, मजदूरी, खेती करने वाले कि बच्चे इस मुकाम को हासिल किया है। अभी देश में ऐसे लाखों करोड़ों मेधावी छात्र गरीबी में संघर्षरत होंगे।
सदियों से इस देश में गरीबों को आर्थिक, सामाजिक और मानसिक रूप से पिछड़ा रखने की साजिश है।बाबा साहेब अंबेडकर ने संविधान में गरीबों की ताकत दी, जिसे मनुवादी दिनदहाड़े जला रहे हैं, और मनस्मृति थोपने की कुचक्र चल रहे हैं।अब जो बहुजन, पिछड़ा, एससी एसटी आरएसएस और भाजपा की चाकरी कर रहे हैं वो अपने पैरों पर कुल्हाड़ी ही मार रहे हैं। अभी हाल में 61 फीसदी हिस्सा सबसे अमीर एक फीसदी आबादी की झोली में गया है जबकि शीर्ष दस फीसदी संपन्न वर्ग के लिए यह आंकड़ा 81 फीदी है. साफ है कि बाकी 90 फीसदी को जूठन मिली है.
अमीर-गरीब के बीच की खाई के मामले में भारत अमेरिका से भी आगे है जहां के एक फीसदी सबसे संपन्न वर्ग के पास देश की 37.3 फीसदी दौलत है.
इस मामले में भारत अमेरिका से भी आगे है जहां के एक फीसदी सबसे संपन्न वर्ग के पास देश की 37.3 फीसदी दौलत है. हालांकि रूस को पीछे छोड़ने के लिए उसे अभी लंबा सफर तय करना है जिसके एक फीसदी अमीरों के लिए यह आंकड़ा 70.3 फीसदी है.
कुल आबादी की आय और संपत्ति अज्ञात है, तो अनिवार्य रूप से इसकी उप-आबादी (धर्म, जाति और जनजाति) की आय और संपत्ति भी अज्ञात है। इसका अर्थ है कि दशकों की सामाजिक नीति और आरक्षण पर संघर्ष उनके भौतिक प्रभावों के अल्प या शून्य जानकारी पर आधारित है। सर्वोत्तम उपलब्ध सबूत त्रुटिपूर्ण है, क्योंकि ऊपरी हिस्से के बारे में कोई जानकारी नहीं है, पर उस त्रुटिपूर्ण सूचना से भी पता चलता है कि अगड़ी और पिछड़ी जातियों के बीच खाई बहुत चौड़ी है और बढ़ती जा रही है। असमानता के बारे में अभी जो जानकारी है, उसका इस्तेमाल जटिल हो सकता है। असमानता संबंधी उचित जानकारी मौजूद नहीं है। असमानता संबंधी उपयोग योग्य जानकारी के अभाव में सभी पक्षों को मनमाने दावे करने का हक मिल जाता है। तथ्यों का नहीं होना उनके लिए सुविधाजनक है, क्योंकि तथ्यों की कमी उन्हें लक्षित वर्ग को अपील करने की अनुमति देती है।
जतीय जनगणना नहीं करवाने की केंद्र की मंशा को समझें और इसके लिए आंदोलन करें।
जय मूलनिवासी!
अध्यक्ष, ओबीसी महासभा
पटना।
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