भ्रष्टाचार पर कड़ाई से अंकुश लगे। प्रसिद्ध यादव।

   भ्रष्टाचारियों की संपत्ति को अब आम आदमी को लूट लेना चाहिए।


देश में भ्रष्टाचार किस तरह फलफूल रहा है, सर्वविदित है। आज थानेदार, ठेकेदार से लेकर पुलिस तक करोड़पति बन बैठे हैं। पटना में जाक्कनपुर थाना प्रभारी कमलेश शर्मा के पास से करोड़ों की संपत्ति मिली तो बिहटा के  अमहारा में एक ठेकेदार के यहां चार करोड़ नकदी मिली। इससे पूर्व भी भू माफिया से लेकर बालू माफिया ने अकूत सम्पति बनाई है। संतोषजनक बात है कि सरकार इसपर नकेल कस रही है, फिर भी यह नाकाफी है।अभी भी भ्रष्ट लोग अपने सर उठाये हुए हैं और इसके सर तभी कुचले जाएंगे, जब जनभागीदारी होगी। आम आदमी में भ्रष्टाचारियों के लेकर गुस्सा बढ़ता जा रहा है।ऐसा न हो कि अभावग्रस्त जनता इनकी सम्पतियों को हथियाना शुरू न कर दे, इससे पहले भ्रष्ट लोग सुधर जाये और अपना छदम चोला पहनकर समाजसेवी का नाटक कर रहे हैं, सरकार इसके नाटकों को पटाक्षेप कर दे। बिहार के 90 फीसदी थानेदार भ्रष्ट है और सभी थानेदारों की संपत्ति की कुंडली खंगालने की जरूरत है।जनता का सबसे ज्यादा शोषण और दुर्व्यवहार थानों में ही होती है।
भ्रष्टाचार के प्रति शून्य सहिष्णुता के लिए सरकार ने आम जनता को सरकारी विभागों में भ्रष्टाचार के मामलों की रिपोर्ट करने के लिए टोल फ्री नंबर 0177-2629893 की सुविधा दी है। भ्रष्टाचार रोकथाम (संशोधन) बिल, 2013 भ्रष्टाचार रोकथाम अधिनियम (एक्ट), 1988 में संशोधन करता है।

इस एक्ट के तहत किसी सरकारी कर्मचारी को उकसा कर रिश्वत देना एक अपराध माना गया है। इस बिल में किसी सरकारी कर्मचारी को रिश्वत देने, और किसी व्यावसायिक संगठन द्वारा रिश्वत देने से संबंधित विशेष प्रावधान तैयार किए गए हैं।  

इस बिल में केवल संपत्ति की हेराफेरी और आय से अधिक संपत्ति रखने को लेकर आपराधिक दुर्व्यवहार को दोबारा परिभाषित किया गया है।

इस बिल में रिश्वत लेने से संबंधित अपराधों, आदतन रिश्वत लेने और रिश्वत को बढ़ावा देने से संबंधित अपराधों के लिए परिभाषाओं और दंडों में संशोधन किया गया है।

इस बिल में भ्रष्टाचार के आरोपी सरकारी कर्मचारियों की संपत्ति की कुर्की और जब्ती के लिए अधिकार और प्रक्रियाओं को बताया गया है।

एक्ट के तहत सेवारत सरकारी कर्मचारियों पर मुकदमा करने से पहले पूर्व अनुमति अनिवार्य है। यह बिल सेवानिवृत्त कर्मचारियों को भी यह सुरक्षा प्रदान करता है।

प्रमुख मुद्दे और विश्लेषण

इस बिल में रिश्वत देने को एक विशेष अपराध माना गया है। सभी परिस्थितियों के अंतर्गत रिश्वत देने के लिए दंड दिया जाएं या नहीं इसे लेकर अलग-अलग विचार हैं। कुछ ने यह तर्क दिया है कि मजबूरी में रिश्वत देने वाले व्यक्ति और अपनी इच्छा से रिश्वत देने वाले व्यक्ति में फर्क किया जाए।

इस बिल में उस प्रावधान को हटा दिया गया है जो रिश्वत देने वाले को, भ्रष्टाचार के मुकदमे की सुनवाई के दौरान उसके द्वारा दिये गए किसी भी बयान के लिए, सजा से बचाता है। ऐसा करना रिश्वत देने वाले को कोर्ट में गवाह के रूप में पेश होने से रोक सकता है।


इस बिल में आपराधिक दुर्व्यवहार की परिभाषा को बदल दिया गया है। अब आय से अधिक सम्पत्तियों को रखने के अलावा उन्हें रखने की नीयत को भी साबित करना ज़रूरी हो जाएगा। इस प्रकार से, इस बिल में आय से अधिक संपत्ति रखने के अपराध को साबित करने की सीमा को बढ़ा दिया गया है।

आपराधिक दुर्व्यवहार के अपराध को दोबारा परिभाषित करने में, यह बिल उन परिस्थितियों को ध्यान में नहीं रखता है जहां सरकारी अधिकारी: (i) अवैध तरीकों का उपयोग करता हो, (ii) अपने पद का दुरुपयोग करता हो, या (iii) सार्वजनिक हितों की अनदेखी कर स्वयं या किसी अन्य व्यक्ति के लिए बहुमूल्य चीज़ या इनाम प्राप्त करता हो।

इस एक्ट के तहत, रिश्वत लेने के अपराधों के लिए व्यक्ति को पहले से ही आदतन रिश्वत लेने या रिश्वत को बढ़ावा देने का दोषी मान लिया जाता है। इस बिल में रिश्वत लेने के अपराध को ही शामिल करने के लिए इस प्रावधान में संशोधन किया गया है। कुछ विभागों के बड़े अधिकारियों की मनमानी इस तरह बढ़ी हुई है कि वे राष्ट्रीय सम्पति को अपनी पैतृक संपत्ति समझ दोहन करने में भी नही डरते हैं।
जबतक भ्रस्टाचार खत्म नही होगा,तबतक राष्ट्रवाद की भावना आहत होती रहेगी।


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