ई रामास्वामी पेरियार एक क्रांतिकारी सुधारवादी- प्रसिद्ध यादव।



     पेरियार को  24 दिसम्बर को पुण्यतिथि पर कोटि कोटि नमन!

  देश को  एक नई राह दिखाने वाले थे।

1924 में केरल में त्रावणकोर के राजा के मंदिर की ओर जाने वाले रस्ते पर दलितों के प्रवेश को प्रतिबंधित करने का विरोध हुआ था. इसका विरोध करने वाले नेताओं को राजा के आदेश से गिरफ़्तार कर लिया गया और इस लड़ाई को आगे बढ़ाने के लिए कोई नेतृत्व नहीं था. तब, आंदोलन के नेताओं ने इस विरोध का नेतृत्व करने के लिए पेरियार को आमंत्रित किया.

इस विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व करने के लिए पेरियार ने मद्रास राज्य काँग्रेस अध्यक्ष के पद से इस्तीफ़ा दिया. वो गांधी के आदेश का उल्लंघन करते हुए केरल चले गए.

त्रावणकोर पहुंचने पर उनका राजकीय स्वागत हुआ क्योंकि वो राजा के दोस्त थे. लेकिन उन्होंने इस स्वागत को स्वीकार करने से मना कर दिया क्योंकि वो वहां राजा का विरोध करने पहुंचे थे.

उन्होंने राजा की इच्छा के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन में भाग लिया, अंततः गिरफ़्तार किए गए और महीनों के लिए जेल में बंद कर दिए गए. केरल के नेताओं के साथ भेदभाव के ख़िलाफ़ उनकी पत्नी नागमणि ने भी महिला विरोध प्रदर्शन का आयोजन किया.

काँग्रेस सम्मेलन में जातीय आरक्षण के प्रस्ताव को पास करने के उनके लगातार प्रयास असफल हुए. इस बीच एक रिपोर्ट सामने आई कि चेरनमादेवी शहर में काँग्रेस पार्टी के अनुदान से चलाए जा रहे सुब्रह्मण्यम अय्यर के स्कूल में ब्राह्मण और गैर-ब्राह्मण छात्रों के साथ खाना परोसते समय अलग व्यवहार किया जाता है.

पेरियार ने ब्राह्मण अय्यर से सभी छात्रों से एक समान व्यवहार करने का आग्रह किया. लेकिन न तो वो अय्यर को इसके लिए राजी कर सके और न ही काँग्रेस के अनुदान को रोक पाने में कामयाब हुए. इसिलिए उन्होंने काँग्रेस छोड़ने का फैसला किया.

काँग्रेस छोड़ने पर उन्होंने आत्म-सम्मान आंदोलन शुरू किया जिसका लक्ष्य गैर-ब्राह्मणों (जिन्हें वो द्रविड़ कहते थे) में आत्म-सम्मान पैदा करना था. बाद में वो 1916 में शुरू हुई एक गैर-ब्राह्मण संगठन दक्षिण भारतीय लिबरल फेडरेशन (जस्टिस पार्टी के रूप में विख्यात) के अध्यक्ष बने.


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