गोपाल दास नीरज की कविता- प्रसिद्ध यादव।

    


 मौसम कैसा भी रहे कैसी चले बयार

बड़ा कठिन है भूलना पहला-पहला प्यार

बिना दबाये रस न दें ज्यों नींबू और आम

दबे बिना पूरे न हों त्यों सरकारी काम 

कवियों की और चोर की गति है एक समान

दिल की चोरी कवि करे लूटे चोर मकान

जहाँ मरण जिसका लिखा वो बानक बन आए

मृत्यु नहीं जाये कहीं, व्यक्ति वहाँ खुद जाए

टी.वी.ने हम पर किया यूँ छुप-छुप कर वार

संस्कृति सब घायल हुई बिना तीर-तलवार

आँखों का पानी मरा हम सबका यूँ आज

सूख गये जल स्रोत सब इतनी आयी लाज

ज्ञानी हो फिर भी न कर दुर्जन संग निवास

सर्प सर्प है, भले ही मणि हो उसके पास

राजनीति शतरंज है, विजय यहाँ वो पाय

जब राजा फँसता दिखे पैदल दे पिटवाय

दूध पिलाये हाथ जो डसे उसे भी साँप

दुष्ट न त्यागे दुष्टता कुछ भी कर लें आप


तोड़ो, मसलो या कि तुम उस पर डालो धूल

बदले में लेकिन तुम्हें खुशबू ही दे फूल।


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