सिरमौर या कांटे ! प्रसिद्ध यादव।
पटना जिला अध्यक्ष के चुनाव में जिसतरह पटना जिला जिला परिषद के अध्यक्ष के चुनाव में राजद विधायकों और नेताओं ने अपनी प्रतिष्ठा बनाकर अध्यक्ष पद पर काबिज़ करवाये, इसके लाभ की बात करना बेमानी होगी, श्रेय भी मिल जाये तो बहुत है। अध्यक्ष की प्रतिक्रिया थी कि सभी दलों का साथ मिला। यानी दिग्गज नेता ये नही कह सकते हैं कि अध्यक्ष राजद की कृपा से बनी है। कहना भी नहीं चाहिए , जिसे लोग सिरमौर समझ रहे हैं वो कही उल्टे राजनीति की कब्र न बन जाये। विधायक जब अपनी ताक़त को दिखाते हैं तब संगठन के अध्यक्ष या अन्य पदाधिकारी की कोई वजूद नही समझते हैं। यही कारण है कि राजद के इतने कार्यकर्ता रहते हुए , नेता रहते हुए भी बलहीन है, जिसे जो मन आता है वही रणनीति तैयार करने लगते हैं। एक बूथ के कार्यकर्ता से जिला के नेताओं तक कोई दिल की बात पूछ लें वो इस चुनाव में जीत का जश्न मनाये की हार का गम। खैर, ये सब समरथ को नही दोष गुसाईं के तर्ज पर चलता रहेगा। यहां कोई किसी को देखने सुनने वाला नही है, अपनी अपनी डफली, अपनी अपनी राग सुनाई पड़ती है। कहने को समाजवादी की , सामाजिक न्याय, अंतिम व्यक्ति की आवाज सुनने की पार्टी है, लेकिन पैसों की खनक के आगे नीचे की आवाज दब गई है। जहाँ अपनी स्वतंत्र विचार को रखने से अपने ही दल में डर , भय लगे वहां कितना लोकतंत्र है? सिर्फ चुनाव में ईवीएम की तरह कार्यकर्ता हो कर रह गए हैं। उच्च नेतृत्व जमीन वाले की जानने की बात दूर, पहचानती नही है। इसलिए सबकुछ दिल पर बोझ रखकर लालटेन जल रहा है। राजनीति में अगर नीति नही है तो अनीति होना तय है और ऐसे अनीति का विरोधी करना नैतिकता है।
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