रेलवे में घटते कर्मचारी , बढ़ती अफसरशाही! / प्रसिद्ध यादव।

     




 कभी रेलवे में करीब 17 लाख कर्मचारी हुआ करते थे, जब न इतनी ट्रेन थी, न इतने जोन न मंडल। आज 12.27 लाख के करीब कर्मचारी रह गए हैं। कुछ नये तकनीक आने से कर्मचारियों की जगह ले ली है, लेकिन रेलवे का विस्तार भी हुआ है। आज भी रेलवे में मानव श्रम  हो रहा है, लेकिन ठेकेदारों के द्वारा, लेकिन मौजूदा सरकार ने इससे भी एक कदम आगे बढ़कर रेलवे को निजीकरण करने में लगी हुई है। रेलवे में कुछ पदों पर बहाली निकली है, लेकिन इसकी प्रक्रिया इतनी जटिल कर दी गई है कि एक बहाली पूरा करने में 3-4 साल लग जाते हैं। भारत की आबादी विश्व में दूसरा है। देश में सांसदों की, विधायकों की , आयोगों की,अधिकारियों की संख्या बढ़ रही है फिर वर्ग तृतीय व चतुर्थ में कमी क्यों ? इन पदों पर काम करने वाले पद को निजीकरण और संवेदकों को क्यों दिया जा रहा है?अब रेलवे की कोई ऐसी बहाली नही है, जिसे पूरा करने के लिए अभ्यर्थियों को आंदोलन नही करना पड़ा? सरकार चुनाव समय पर करवा लेती है, क्योंकि ऐसा नहीं होने से सरकार पर संकट आ जायेगी, लेकिन भर्ती समय पर न हो तो संकट बोर्ड के ऊपर नही आने वाले हैं।  रेलवे अधिकारियों की फ़रमान और मनमानी आज भी ब्रिटिश हुकूमत से कम नही है , जो मौखिक कह दिया वही आदेश हो गया। आज भी इनके सैलून को देखें, जिसमें मण्डल , जोनल स्तर के अधिकारी विजिट करते हैं, कोई स्टार होटल से कम नही होता है। यही हाल इनके सरकारी आवास और दफ्तर के भी होता है, लेकिन चतुर्थ वर्गीय , तृतीय वर्गीय कर्मचारियों के रहन सहन आवास असुरक्षित होते हैं, जीर्ण शीर्ण अवस्था में होते हैं।रेलवे में सालाना तौर पर कितने लोगों को नौकरियां मिलीं और कितने लोग रिटायर हुए?  हर साल रिटायर होने वाले लोगों की संख्या उनसे ज़्यादा है जो कर्मचारी के तौर पर रेलवे से नए जुड़ रहे हैं. नतीजे बताते हैं कि 2008 से लेकर 2018 तक, एक भी साल ऐसा नहीं रहा जिसमें रिटायर होने वाले कर्मचारियों की तुलना में अधिक लोगों को नौकरियां मिलीं. यही वजह है कि रेलवे में रिक्तियों की संख्या बढ़कर करीब 3 लाख तक पहुंच गई.

लोकतांत्रिक सरकार लोककल्याणकारी होती है, व्यवसायी नहीं। अगर सरकार व्यवसायी हो गई तो समझें कि वहां के  आम जन को  मुसीबतें आना तय है। मौजूदा हालात इसी की एक छोटी सी चिंगारी है।

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