सरकार की अड़ियल रवैया के कारण बढ़ती बेरोजगारी !/प्रसिद्ध यादव।

         


   वास्तव में, सरकार अगर बेरोजगार युवाओं के प्रति चिंतित होती तो देश में लाखों पद खाली नही पड़े रहते। जो बहाली निकल भी रही है, वो  चयन होने में इतना समय लग जाता है कि 3-4 सालों में फिर उतने पद रिक्त हो जाते हैं। केंद्र सरकार की हर साल दो करोड़ की और बिहार सरकार के 19 लाख को रोजगार देने की वादे चुनावी जुमले साबित हुआ। अगर देश के युवाओं को अगर यह वादाखिलाफी याद रहती तो शायद सरकार की इतनी दुःसाहस नही होती कि युवाओं से भद्दी मज़ाक उड़ाते। राजनेताओं को पता है कि युवाओं को धर्म जाति के आग में झोंक दो फिर मनमानी काम करो।देश में बढ़ती इस बेरोजगारी के दो मुख्य कारण है. पहला कारण सरकार का वह अड़ियल रवैया है, जिसमें सरकार पैसे खर्च नहीं करना चाहती. जिससे लोगों के हाथ में पैसा आना कम हो गया है. जब पैसा नहीं है तो लोग खर्च नहीं कर पा रहे हैं. जिससे बाजार और प्राइवेट सेक्टर पर बुरा असर पड़ता है. दूसरा, सरकार बेरोजगारी या आर्थिक मंदी को लेकर गंभीर नहीं दिखती हैं, जो उसके मंत्रियों के बयानों से साबित हो जाता कि वे सच्चाई को स्वीकार करने की जगह उलटे-सीधे बयान देकर इस पर पर्दा डालने की कोशिश करते रहते हैं.जब तक सरकार लोगों की मांग को पूरा नहीं करेगी या इस पर कोई उचित कदम नहीं उठाएगी तब तक हालात के और ज्यादा बिगड़ने की संभावना बनी रहेगी. सरकार नहीं चाहती कि उनसे कोई सवाल करे, जिस भी अर्थशास्त्री ने सवाल करने की कोशिश की तो उसे परोक्ष या अपरोक्ष तौर पर बाहर कर दिया गया.सबसे पहले अपनी प्राथमिकताओं में बदलाव करना होगा. इसके लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर या फ्लाईओवर के निर्माण की जगह सरकार को उस क्षेत्र में निवेश बढ़ाना होगा जहां नौकरियों ज्यादा से ज्यादा पैदा की जा सकें. ग्रामीण क्षेत्रों की बेरोजगारी को दूर करने के लिए मनरेगा में निवेश बढ़ाना होगा और शहरी क्षेत्र के लिए भी मनरेगा जैसी कोई योजना शुरू करनी होगी. जिससे लोगों के हाथ में पैसा आए और वे खर्च कर सकें. तभी देश को इस गंभीर संकट से निकाला जा सकता है. युवा अगर अपने भविष्य के प्रति चिंतित रहते तो सरकार और जनप्रतिनिधियों से उनके वादे को जरूर याद दिलाते।


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