अमर शहीद जय गोविंद सिंह यादव हो, चरन पखारीं तोहार। - प्रसिद्ध यादव।
1 1965 के शहीद जय गोविंद सिंह यादव के गाँव बाबूचक!
शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशा होगा...। जगदंबा प्रसाद मिश्र हितैषी की देशभक्ति में पगी यह रचना 1916 में लिखी थी, लेकिन आज भी लोगों के जुबां पर रहती है। 27 सितम्बर 1965 सोमवार को बिहार के पटना जिला के फुलवारी शरीफ अंचल के बाबूचक गांव के स्व मिश्री लाल यादव के सुपुत्र जय गोविंद सिंह यादव भारत पाक युद्ध में शहीद हो गये। तत्कालीन प्रधानमंत्री मंत्री लाल बहादुर शास्त्री की एक सांत्वना पत्र आयी थी। गांवों में मातम छा गई थी, लेकिन लोगों को फख्र भी था कि आज गांव के लाल भारत माँ के काम आये, लेकिन इसके बाद शहीद जय गोविंद सिंह यादव की इस गांव में न कोई प्रतिमा, न स्मारक, न कोई द्वार है, जिससे कि लोग जानें कि यहां के लाल भी देश के लिए शहीद हुए थे। प्रखंड और जिला मुख्यालय पर इनकी स्मृति और प्रतिमा की बात कौन करे? न लोगों को इनके जन्मदिन और शहीद दिवस भी नही मालूम है कि इनका स्मरण कर सके। शहीदों को इतना उपेक्षित कतई उचित नही है। यहां के स्थानीय सांसद और विधायक को इस गांव में आना जाना रहता है, लेकिन वेलोग भी इस शहीद रत्न से अनजान बने रहे या कभी कोई दिलचस्पी नहीं ली। इसमें मुख्यतः थल सेना से युद्ध हुआ था और टैंकरों से भी हुआ था। हमारे देश के करीब तीन हजार सैनिक शहीद हुए थे।
भारत ने पाकिस्तान के 1920 किलोमीटर (जिसमें सियालकोट, लाहौर और कश्मीर क्षेत्र) के हिस्से पर कब्जा कर लिया। जबकि पाकिस्तान भारत के छम्ब और सिंध से लगते रेगिस्तान पर 550 किलोमीटर पर कब्जा करने में कामयाब हो गया।
भारत पाकिस्तान में युद्ध बंद हो गया और रूस के प्रधानमंत्री ने मध्यस्थ बनकर दोनों को ताशकंद बुलाया। 10 जनवरी 1966 को भारत-पाकिस्तान में समझौता करवाया गया। भारत ने सारे जीते हुए इलाके वापस कर दिए। इस पर भारतीयों को बड़ा आक्रोश था। 11 जनवरी 1966 को लाल बहादुर शास्त्री की दिल का दौरा पडऩे से अचानक मृत्यु हो गई और क्रोध सहानुभूति की लहर बन गई थी।
भारत सरकार और बिहार सरकार से आग्रह है कि शहीद जय गोविंद सिंह यादव की आदम कद प्रतिमा और स्मृति द्वारा जिला मुख्यालय, प्रखंड मुख्यालय और गांव में बनाई जाये। साथ ही इनके शहीद दिवस 27 सितम्बर को प्रखंड मुख्यालय पर राजकीय सम्मान के साथ मनाई जाये।
2 हिंसा की आग में बर्बाद हुआ था शहीद जय गोविंद सिंह यादव का गांव बाबूचक -
27 सितम्बर1965 को जब बाबूचक के लाल जय गोविंद सिंह यादव शहीद हुए तब यह गांव सुर्खियों में आया था, राजनेताओं का दौड़ा शुरू हुआ था पूर्व सांसद कॉम रामावतार शास्त्री, पूर्व प्रमुख कॉमरेड रामनारायण यादव, पूर्व मुखिया राम लक्षण यादव, रामायण मुखिया, परमेश्वर मुखिया, जुगल मुखिया, पूर्व विधायक राम नाथ यादव, पूर्व विधायक दानापुर सुखसागर यादव, बुद्धदेव यादव आदि के लिए एक पवित्र भूमि और वामपंथी का गढ़ बन गया था। इससे आसपास के समन्तियों को यह रास नही आया और इस पंचायत के पूर्व मुखिया ने अपनी बंदूक देकर शहीद के परिवार में आपस में तीन हत्या करवा दी। सबकुछ धूमिल हो गया और तो और इस तिहरे हत्याकांड पर गाना बनाकर चौक चौराहे मेले में गाना शुरू कर दिया और गीत की पुस्तकें बेचना शुरूं कर दिया। शहीद की शहादत को गुमनाम करने की साजिश कामयाब हो गया। इस मुकदमें में लोगों के जमीन जायदाद बिक गये, जो पढ़ने वाले थे, सबकी पढ़ाई छूट गई थी। कई को सजाए मौत , कई को आजीवन कारावास हुआ था।इस मुकदमे को देख रहे अधिवक्ता पूर्व सांसद गणेश यादव व अन्य नेताओं के सहयोग से समझौता हुआ और पटाक्षेप हुआ। जीवन की गाड़ी धीरे धीरे पटरी पर लौटने लगी। इसी परिवार में हरिहर राय नामी घुड़सवार थे, जो एकबार ट्रेन से मुकाबला हुआ था और ये ट्रेन से आगे नेउरा से चलकर दानापुर पहुंचे थे इन्हीं के पुत्र जामुन राय पहलवान थे ये दानापुर आर्मी अधिकारी डालबर साहब के सम्बन्धी थे,बाबूचक में अखाड़ा में कुश्ती दंगल शुरूं करवाये ।इस अखाड़े में अन्य प्रखंडों के पहलवान दंगल लड़ते थे और इसके नियमित दर्शक पूर्व विधायक बिजेंद्र गोप, उदय मुखिया आदि होते थे। उस वक़्त ये लोग युवा थे विधायक नही हुए थे।इस गांव के लोग नई तरुणाई के साथ अंगड़ाई लिये ही थे कि 8 अक्टूबर 1979 सोमवार के दिन जिस दिन जेपी की मृत्यु हुई थी, जामुन राय फसल पटा रहे थे कि महम्मदपुर के सामंती लोग बन्दूक लेकर आये जामुन राय को गोलियों से भून दिया। स्पोर्ट पर ही मौत हो गई, चारो तरफ दहशत, भय का माहौल बन गया। इस मौत से युवा बिजेंद्र गोप व अन्य क्रोधित हो गये और मारने वाले एक एक कर भी साफ़ हो गये। इस घटना के बाद बिजेंद्र गोप एक बिहार के दुर्दांत अपराधी बन गए, जिसे तत्कालीन एसपी किशोर कुणाल ने पटना सेंट्रल जेल से निकालकर फर्जी इनकोउन्टर की साजिश रची थी, लेकिन शेरेबिहार रामलखन सिंह यादव जेल की गेट पर पहुंच गए और हजारों हजारों की संख्या में यादव के समर्थक जेल को घेर लिया। कुणाल की करतूत और हेकड़ी को यादव ने बन्द कर दी थी। जेल से ही 1985 में बिजेंद्र गोप दानापुर से निर्दलीय और 1990 जनता दल से विधायक बने थे। बाबूचक पूर्व विधायक आशा सिन्हा के पति सत्यनारायण सिन्हा का पैतृक गांव है। इनके परिवार आज भी बाबूचक में ही रहते हैं।
3 दूसरों की लड़ाई खुद लड़ लेते हैं बाबूचक के लोग।
दो पक्ष के विवाद में तीसरे पक्ष के खून बहे । इसे बहादुरी कहें या बेवकूफी। न लेना , न देना और मुफ़्त में जान गंवाना। काश! इतना एफर्ट अपने बच्चों के तरक्की के लिए किया होता तो आज लोग दीन हीन, लाचार, बेवस नही होते।
बाबूचक में एक घर लोहार और 6 - 7 घर कोइरी लोग रहते हैं। ये दोनों पक्षों में विवाद हुआ, पंचायती हुई सुलझाने के लिए, लेकिन उल्टे यादव एक पक्ष लोहार के तो दूसरे पक्ष कोइरी समुदाय के हो गये। ये दोनों के विवाद यादवों के बीच हो गया और फिर समय समय पर दो यादवों की हत्या हो गयी। यह सिलसिला जारी रहा इसके बाद अन्य कई लोगों को आपसी रंजिश में भी जान गई। गांव से 10 -12 परिवार इसमें यादव, कोइरी, लोहार भी गांवों से सदा के लिए पलायन कर गए। पढ़े लिखे लोग भी गांवों की हिंसक घटनाओं से दूर रहे।बहुत समय बाद यादवों की कड़वाहट , मनमुटाव को दूर करने के लिए गांव में पंचायत हुई, इसमें पूर्व विधायक आशा सिन्हा के पति सत्यनारायण सिन्हा भी आये, समझौता हुआ। विधायक रीतलाल यादव का भी इस गांव से पुराना संबंध है।यहां के पुराने वेटननरी डॉक्टर जगदीश यादव, इनके पुत्र डीएसपी योगेंद्र यादव, भाई प्रोफेसर, बहु डॉक्टर, लालबाबू यादव के पुत्र और इंजीनियर रामनरेश यादव के पुत्र दोनो सरकारी बैंक के बैंक प्रबंधक, हमारे फुफेरे भाई इंजीनियर सियासरण सिंह यही से पढ़कर इंजीनियर बने थे, उर्दू फ़ारसी, कैथोलिक के जानकार अग्रज रामाशीष राय से गांव का नाम रौशन हुआ था। व्यवसाय में बिनोद यादव काफी तरक्की की, कठिनायों के दौड़ से गुजड़ते नई इबादत लिखा। रामजानकी चौक पर देव समूह भव्य मंदिर का निर्माण अपने सहयोगियों के साथ किये, जो आकर्षक का केंद्र बना हुआ है। यहां शिक्षक, आर्मी , पारा मिलिट्री फोर्स, जेल जिला और बिहार पुलिस ,रेलवे में युवा भर्ती होकर नई उड़ान भर रहे हैं।बहुत सी घटनाओं का जिक्र नही किया जा सकता है, इससे व्यक्तिगत मान सम्मान का भी ख्याल रखना जरूरी होता है। आज के यहां के युवा, युवती पढ़ लिख कर देश के कोने कोने में अपनी पहचान बना रहे हैं, शिक्षा के प्रति लगाव बढ़ा, साक्षरता दर बढ़ी है। गांव में एक 10 प्लस टू और एक दूसरा प्राथमिक विद्यालय भी है।नेउरा दनियावां रेल लाइन के निकट और दानापुर रेलवे स्टेशन से 3 किमी पश्चिम- दक्षिण एम्स के नजदीक बाबूचक छोटा रकवा का गाँव, अधिकांशतः मजदूर किसान, दैनिक मजदूरी करने वाले पिछड़े हैं। यह दानापुर प्रखंड और शाहपुर थाना की सीमा पर है।सड़क से उत्तर टोला दानापुर और दक्षिण फुलवारी शरीफ है। होली, दीवाली मिलजुलकर मनाते हैं, गाते हैं,सांस्कृतिक कार्यक्रम, खेल कूद सब होते थे, लेकिन राजनीति कटुता अब दूर करते जा रहा है, संकीर्ण मानसिकता घर कर रही है और ये भी लुप्तप्राय हो गई। अर्थयुग का प्रभाव यहां भी पड़ा, आदमी से आदमी दूर हो गया, बचपन के साथी, मानो पहचानते भी नहीं, शराब, प्यार, इश्क , अपराध की बीमारी नये युग की पहचान बन गई है।नव निर्माण हो,नई कहानी गढ़े लेकिन अतीत धूमिल न हो, संजोए रखें ,अपने पुरखों को हृदय में बसाए रखें।
इस देशभक्ति गीत को गुनगुनाते रहिये -
जब-जब देसवा पर
परली बिपतिया
जय गोविंद सिंह यादव हो, जिया के तूँ ही रखवार
बाप-महतारी तेजलऽ
तेजलऽ जियावा
मोर सिपाही हो, तेजल तू घरवा-दुआर।
छोड़ि सुख-निदिया भइली
तपसी जिनिगिया
मोर सिपाही हो, चूमेले माटी लिलार।
मनवाँ गंगाजल लागे
गीता तोरी बोलिया
मोर सिपाही हो, करतब अटल पहार।
धरती बचनियां मांगे
मांगे ले जवनियां
मोर सिपाही हो, मांगे ले तोहरो पियार।
जीत बरदनवां तोहरो
मीत रे मरनवां
जय गोविंद सिंह यादव हो, चरन पखारीं तोहार।
- भोलेनाथ गहमरी के मूल रूप को केवल मेरे द्वारा एक शहीद के नाम जोड़ा गया है।- बाबूचक से प्रसिद्ध यादव।
समाप्त।
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