आंखें ! (कविता )- प्रसिद्ध यादव।
ये आंखें ही बताती है
सब कुछ
किसी के दिल में झांकती है
उसकी फितरत को बताती है।
मोहब्बत और नफ़रत बताती है।
हित अनहित बताती है।
ये किसी से चार हो जाती है
तब दिल लाचार हो जाता है
किसी के जुल्फों में गिरफ्तार हो जाता है।
आंखों की तेवर चढ़ गई तो
तलवार निकल जाती है।
आंखें झुक जाए तो
सौ गुनाहे माफ़ हो जाती है।
कर दे कोई किसी से दगा तो
आंखें चुराती है।
आंखें समंदर है
किसी में खो गए तो
दिल में उतर जाते हैं।
आंखों में भाव है
किसी को निरीह
किसी को शर्मिंदा
किसी को वीर
किसी को जिंदा
या मुर्दा बना देती है।
आंखों में पानी का सैलाब होता है
आंखों की पानी खत्म होती है।
आंखें ज्ञान का साधन है
आंखों से चैन है।
कोई आंखें मारता है
कोई आंखों पर मरता है।
आंखों में लग जाये काजल
जमाने को बना दे पागल ।
आंखें न दिखाना
दिल कर देता है घायल ।
झूठ-सच ,ईमान -बेईमान
तिरस्कार, मान सम्मान
घृणा द्वेष ,वैर भाव
छल कपट अहंकार
बता देता है आंखें ।
आंखों में आंखें डालकर देखो
पूरा स्कैन नज़र आता है।
आदमी का पूरा करतूत नज़र आता है।
झूठ बोलने पर स्वतः बन्द हो जाती है आंखें
गर कोई कर दे गुनाह तो उसे ढूंढती हैं आंखें ।
आंखों में ताकत है
आंखों से इबादत है
आंखों से चेहरे की मुस्कुराहट है।
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