भाजपा को बिहार में अस्तित्व बचाना आसान नहीं होगा।/प्रसिद्ध यादव।
बिहार और यूपी की राजनीति में काफी फर्क है।यूपी में जहां सवर्णों की आबादी 20 फ़ीसदी है, वही बिहार में 13 फीसदी है।भाजपा को बिहार में भरोसा सिर्फ स्वर्ण वोट पर ही हैं, इसमें भी कुछ वर्ग महागठबंधन के साथ खुलेआम है।नीतीश तेजस्वी के मिल जाने से पिछड़ा, अतिपिछड़ा, अल्पसंख्यक, दलित के वोट महागठबंधन के साथ दिखाई पड़ रहा है। भाजपा के साथ केवल लोजपा है।लोजपा भाजपा के वोट बैंक को जोड़ दें तो अधिक से अधिक 20 फीसदी से ज्यादा नही हो पाता है।साहनी,मांझी,कुशवाहा महागठबंधन के साथ हैं तो भाजपा को बेचैन होना लाजमी है।भाजपा पैसों से ताकतवर है और इसके बदौलत कुछ नेताओं को अपने पाले में करने में कामयाब हो सकती है।भाजपा का बिहार में भगवाकरण नही हो सकता है क्योंकि मगध बुद्ध के समय से ही ब्राह्मण संस्कृति की विरोधी रही है !बिहार में भी ओबीसी, दलित, आदिवासी और मुसलमानों की तादाद सबसे ज़्यादा थी. हिन्दुत्व की राजनीति नहीं चलने की वजह इस तरह की जनसांख्यिकी बड़ी वजह रही है. राम मंदिर से जुड़े आडवाणी के रथ को भी बिहार में ही रोका गया था. ऐतिहासिक रूप से मगध पुराने ज़माने से ही ब्राह्मण संस्कृति का विरोधी रहा. बुद्ध के ज़माने से ही बिहार में ग़ैर ब्राह्मण और ग़ैर वैदिक आंदोलन की ज़मीन रही है. बिहारी में सामाजिक परिवर्तन के आंदोलनों की उर्वर भूमि रही. आज़ादी की लड़ाई के दौरान भी त्रिवेणी संघ का आंदोलन चला.'' बिहार में बीजेपी के पास मुस्लिम विरोधी आक्रामक हिन्दू गोलबंदी के आलावा कोई हथियार नहीं है. अभी 2024 दूर है तबतक भाजपा महागठबंधन को तोड़ने की अथक प्रयास कर सकती है चाहे दंड, भेद,रुपया पैसा कुछ भी हो,क्योंकि ये अभी केंद्र की सत्ता नही गंवाना चाहती है। इसकी नजर महागठबंधन के असंतुष्ट नेताओं पर होगी।अब महागठबंधन कैसे अपने सहयोगियों के साथ समन्वय स्थापित करती है, यही बड़ी बात है।
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