प्रकृति संसाधनों का मत कर दोहन!( कविता )-प्रसिद्ध यादव।
प्रकृति संसाधनों का मत कर दोहन!
मत काट हरे -भरे पेड़
मत भर तालाब,आहर ,पाइन
नदियों को बहने दे अविरल
मत डाल रुकावट
जीना हो जाएगा दूभर
कहाँ से लाओगे ऑक्सीजन!
निर्मल पानी,स्वच्छ वातावरण!
बदल जायेगा जलवायु
कहीं अनावृष्टि, कहीं अतिवृष्टि
चक्रवात,तूफ़ान, भूकम्प
अतिगर्मी,अतिठंढ।
पॉलीथिन को करो त्याग
समझो इससे होने वाली नुकसान
अगर रखा इसमें गर्म खाद्य ,पेय पदार्थ
मिल जाते इसमें पॉलीथिन के कच्चे माल
क्या हैं इसके कच्चे माल?
बेकार,बर्बाद अवशिष्ट पदार्थ
नासमझ हम खाते जाते
देह के अंदर हैं रोग पालते
स्वस्थ्य शरीर में लग जाता घुन
जीवन शीघ्र हो जाता क्षुण्य।
पॉलीथिन से भरे नद-नाले ही नहीं
सागर में दिखाया प्रभाव
जलजीव कितने होते विलुप्त
मानव का फिर क्या विशाद?
शपथ ले!न करें!
पर्यावरण से छेड़छाड़
तब हो जीवों के उद्धार।
प्रकृति संसाधनों का मत कर दोहन !

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