जगजीवन राम स्टेडियम खगौल की खत्म होती पहचान !-प्रसिद्ध यादव।

  




शायद आज भी महादलितों को देश में दोयम दर्जे दिया जाता है। जगजीवन बाबू के नाम से किसी स्थान का नामकरण करने की मांग नही किया जा सकता है जैसे मुगलसराय का नामकरण हो गया। जगजीवन हॉल्ट सकून देने वाला नाम है लेकिन डर है कि यह भी कहीं स्टेडियम की तरह धूमिल न हो जाये। जगजीवन स्टेडियम को  अब    क्रिकेट एकेडमी ऑफ़ पठान ( सीएपी ) के नाम से जाना जाता है। जगजीवन राम रेलमंत्री रहते हुए रेलवे और रेलवे कर्मचारियों की कायापलट कर दिए थे लेकिन आज इनके कृत्यों और स्मारक रूपी स्टेडियम भी धूमिल हो गया। इस स्टेडियम की क्या उपयोगिता रही थी ,ये यहां के लोग ही बता सकते हैं। राष्ट्रीय स्तर के खेल से लेकर राष्ट्रीय स्तर के सांस्कृतिक कार्यक्रम होते थे। इस ग्राउंड में पार्श्व गायक मुकेश सब्बीर कुमार, उषा खन्ना, अमीन सायनी जैसे हस्तियों से कभी गुलज़ार हुआ करता था।यहां  सभा मीटिंग होती थी तत्कालीन रेल मंत्री लालू यादव भी इसमें रेलवे सम्बन्धी कार्यक्रम किये थे।, सुबह की मॉर्निंग वॉक से लेकर शारीरिक दौड़ भी होती थी।ग्रुप डी, आरपीएफ की बहाली की भी  दौड़ इसी ग्राउंड में होती थी लेकिन अब ये सब अतीत के पन्नो में सिमट कर रह गई। रेलवे सिनेमा हॉल नेसनाबूत हो गया, एनसी घोष पर रंगकर्मी के बदले रेल अधिकारियों का कब्जा हो गया, वीएन शर्मा इंस्टीट्यूट धूल फांक रहा है तो इसके पीछे के ग्राउंड में झाड़ झाँकर व्यवस्था को मुँह चिढ़ा रहा है।रेलवे का ऐसा व्यवसायीकरण हुआ कि एक ही झटके में रोजगार, कला संस्कृति, खेलकूद प्रतियोगिता खत्म हो गया और किसी को पता भी न चला। जिन्हें पता है उनके मुँह ,कान आंखें बंद हैं। वे मरणासन्न अवस्था में है। यहां हर रोज गर्दन पर तलवार चल रही है और लोग उफ कहने के बजाय कह रहे हैं कि हुजूर की तलवार की धार बड़ी अच्छी और तेज है।बस !यही याद रखें कि आज उसकी बारी तो कल तेरी बारी ।एकदिन सबको कटना तय है।

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