धर्म की ढाल पर अमानवीयता करने का प्रमाण ! -प्रसिद्ध यादव।
धर्म के नाम पर अमानवीयता, क्रूरता, भेदभाव, ऊंचनीच, जातपात, धर्म मज़हब में नफरत कबतक ? हम किसी भी चीज को मानवीय ,वैज्ञानिक व दृष्टिकोण से क्यों नहीं देखते? यही मानवतावादी दृष्टिकोण के कारण हमारे धर्म की अनेक बुराइयां खत्म हुई है जैसे सती प्रथा, बाल विवाह ,छुआछूत आदि । आज अंतरजातीय विवाह, विधवा विवाह ,अन्तरधर्म विवाह आदि वैधानिक मान्यता प्राप्त है। जब ये कानून लागू हुए होंगे उस समय भी धर्म के ठेकेदार हंगामा किया होगा लेकिन अन्तोगत्वा अमानवीय मान्यता खत्म हुई। बिहार के शिक्षा मंत्री डॉ चंद्रशेखर प्रसाद ने रामचरित मानस के कुछ आपत्तिजनक चौपाइयों पर टिप्पणी किये तो इसमें क्या बुराई है ? हालाँकि कई धर्माचार्य इसे अपने स्तर से व्याख्या कर सही साबित करने में लगे हुए हैं। मंत्री के पुतले दहन किया गया, न्यायालय में याचिका दायर किया गया और तो और जीभ काटने पर 10 करोड़ का ईनाम भी घोषित किया गया व व्यंग में चरवाहा विद्यालय का स्टूडेंट, अनपढ़ तक करार दिया गया।ऐसा कहने वाले कौन लोग हैं? क्या सनातन धर्म में कुछ जाति विशेष के लोग ही है? इनका विरोध करना ही मानस की आपत्तिजनक चौपाइयों की पुष्टि करता है। जिन चौपाइयों से किसी वर्ग विशेष के मान सम्मान पर ठेस पहुंचती हो,किसी जाति विशेष को श्रेष्ठ बताया गया है तो कोई आपत्ति क्यों नहीं कर सकता है ? गंगा मैया में 51 दिनों तक विलास कुंज में क्या नही परोसा जायेगा? बीकनी पहनकर रंगरेलियां, शराब ,शबाब,कवाब क्या नही है लेकिन अब किसी का धर्म नष्ट नही हो रहा है।आखिर धर्म के नाम पर दोहरी नीति क्यों? विश्वगुरु और हिंदू धर्म के रटा मारने वाले एक भी गंगा मैया के इस दुर्गति पर मुंह नही खोले क्योंकि इस क्रूज की हरी झंडी उनके प्रधान सेवक ने दिखाया था। अगर यही काम कॉंग्रेस में हुआ होता तो अबतक कितने ग्रन्थ के पन्ने उलट जाते,धर्माचार्यों का अवतरण होता,गंगा मैया में डुबकी लगती,कितने ढोंगी जल समाधि के स्वांग रचते। गंगा में विलासिता से हिन्दू धर्म,सनातम धर्म आहत हुआ कि नही ?पूछता है भारत! जितना मानस की चौपाइयों के लिए तूफ़ान मचा हुआ है उतना शिक्षा, स्वस्थ्य, रोजगार, घर,जमीन,संपति से वंचितों के लिए होता तो मानवता के प्रति प्रेम समझ में आता लेकिन यहाँ तो गैर बराबरी के सिद्धांत में विश्वास करने वाले धर्म के ठेकेदार बने हुए हैं। किसी गरीब के घर में चूल्हा नहीं जलता ,उनके बच्चे नही पढ़ते हैं, करोड़ों बच्चे कुपोषित हैं, करोड़ों युवा बेरोजगार ,सही चिकित्सा नही होता ,इसके लिए देश में कितने आंदोलन हुए। क्या इन अधिकारों को रामचरित मानस दिला देगा।कतई नहीं, ये हमारा संविधान देगा ,लेकिन इसकी प्रतियां जलाई गई ।क्यों ? रामचरित मानस का सामुहिक पठन हो रहा है। क्या भारतीय संविधान का सामुहिक पठन की प्रेरणा कोई दिया या आंदोलन चला ।नहीं । शिक्षा सवाल करता है और अंधभक्ति बिना सवाल के भेड़िया चाल का चलन है।सोचना होगा कि भेड़िये के चाल चले या तर्कशील बनकर चलें।गैर बराबरी भी एकदिन सतीप्रथा की तरह खत्म होगी । राजनीति के चक्कर में एक सत्य कहने वाले चंद्रशेखर अभिमन्यु की तरह चक्रव्यूह में फंसे हुए हैं और कुछ को छोड़कर बाकी लोग मौन धारण किये हुए हैं जो अच्छा नहीं है।सच को सच कहने की हिम्मत और ताकत होनी चाहिए। इसके कारण हो सकता है कि आपके अनेक मित्र आपसे नाराज़ हो जाएं,आपको जातिवादी कहें लेकिन कोई बात नहीं। सत्य कहने के लिए गैलेलियो को तोड़ा मरोड़ा गया, यीशु को सूली पर चढ़ाया गया, सुकरात को ज़हर दिया गया लेकिन आज भी उनके कृतियों हमें रौशनी दे रही है क्योंकि वह शाश्वत सत्य था। इसलिए चंद्रशेखर की अनापत्ति शाश्वत सत्य है और सभी को इनका साथ देना चाहिए।

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