राष्ट्रीय संपत्ति को पैतृक संपत्ति समझने वाले !- प्रसिद्ध यादव।
भ्रष्टाचार के मूल में भ्रष्टाचारी को लगता है कि उन्हें जो शक्तियां दी गई है वो जन सेवा और देश सेवा के लिए नही बल्कि राष्ट्रीय संपत्ति को निजी संपत्ति में बदलने के लिए है। तीव्र बुद्धि विवेक वाले को यह अधिकार दी जाती है लेकिन सारी बुद्धि लूटने खसोटने में लगा देते हैं। आखिर ये लूट खसोट किसके लिए ? पीढ़ी दर पीढ़ी आर्थिक स्वालम्बन के लिए ही न ! पकड़े जाने पर कौन साथ जाता है? कोई नहीं। कल तक सीने तान कर घूमने वाले अब मुँह छुपा कर जीते हैं।ऐसे कुकर्म से भला क्या फायदा होगा? काम करवाने के लिए निरीह जनता जाती होगी ,कितना दुत्कारा होगा और बिना नकद नारायण के फाइल पर कलम नही चलती होगी।ये सारे दृश्य जीवन के अंत में जरूर प्ले बैक होता होगा। भ्रष्टाचारी से जनता कितनी त्राहिमाम है, ये कभी सोचा है?यह लोकतांत्रिक देश है और हर किसी को उतना ही वेतन मिलता है जितना में परिवार का भरण पोषण हो जाये न कि अपर धन संरह करने के लिए। अगर किसी के पास ज्यादा धन संग्रह है तो निश्चित रूप से वो भ्रष्ट, देशद्रोही है।उसकी सारी संपत्ति की जांच होनी चाहिए और पकड़े जाने पर कठोर कार्यवाही करने की जरूरत है। आम आदमी, मेहनतकश जनता की चेहरे को कभी याद करना । सच में रिश्वत लेते हाथ कांप जाएगा। कभी संत कबीर दास की दोहे " क्या लेकर तू आया जग में,
क्या लेकर तू जाएगा,
सोच समझ ले रे मन मूरख,
अंत काल पछताएगा,
क्या लेकर तू आया जग में,
क्या लेकर तू जाएगा
भाई बंधु मित्र तुम्हारें,
मरघट तक संग जाएंगे,
स्वारथ के दो आँसू देकर,
लौट के घर को आएँगे,
कोई ना तेरे साथ चलेगा,
काल तुझे ले जाएगा,
क्या लेकर तू आया ज़ग में,
क्या लेकर तू जाएगा।
कंचन जैसी कोमल काया,
मूरत जलाई जाएगी
जिस नारी से प्यार करा तूने,
वो भी साथ ना आएगी,
एक महीना याद करेगी,
फिर तू याद ना आएगा,
क्या लेकर तू आया ज़ग में,
क्या लेकर तूँ जाएगा।
राजा रंक, पुजारी पंडित,
सब को एक दिन जाना है,
आँख खोल कर देख बाँवरे,
जगत मुसाफ़िर खाना है,
पवन कहे सब पाप पुण्य यहीं,
अंतिम साथ निभाएगा,
क्या लेकर तू आया ज़ग में,
क्या लेकर तूँ जाएगा।
सोच समझ ले रे मन मूरख,
अंत काल पछताएगा,
क्या लेकर तू आया जग में,
क्या लेकर तू जाएगा। "
को याद कर लेना।
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