हेलो !हाय ! ठीक हैं!!! -प्रसिद्ध यादव। (कहानी )
अस्पताल के बिस्तर पर पड़ी बृद्ध महिला से बेटा कभी बहु को व्हाट्सएप पर तस्वीरों के साथ बात करवाता कभी उसकी बेटियों से। बृद्धा सिर्फ टुकुर टुकुर देखती कुछ नही बोलती थी। बेटा माँ को कहता " देखो ये तेरे नयनों की तारा है, पहचान रही है? उधर से बेटी कहती " राधे राधे माँ ! फिर भी कोई जवाब नहीं देती। बेटा अपनी पत्नी को बोला -" केवल मोबाईल पर हेलो हाय करे से होगा कि यहाँ मा के आकर हाथ पैर भी दबाती ." ऐंठते ऐंठते बुढापा आ गया, लेकिन ऐंठने की आदत नहीं गयी। तेरी माँ है तू देख ... " इतना कहते कहते फोन काट दी।बृद्ध माँ बोल नही सकती थी लेकिन सारी बातें समझ रही थी।वे झट से बेटे की सर पर हाथ रखकर मुंह पर उंगली रखकर संकेत दी कि बेटा मेरे लिए बहु से मत लड़ो।मेरा क्या कब्र में पांव लटके हुए हैं।बेटा को ड्यूटी जान होता था और रात में पत्नी की गुलामी भी। बेटा नर्स को अपना मोबाईल नम्बर देकर चला गया कि रात में कभी कोई इमरजेंसी पड़े तो मुझे इतला करें। रात में हर रोगी के पास एक अपना परिवार होता लेकिन बृद्धा के पूरा भरा परिवार होते आपातस्थिति में भी नर्सों के सहारे छोड़ कर चला गया। बृद्धा रात भर आंसू बहाते रहती।नर्स आकर तकलीफ़ पूछती लेकिन वो मुँह से कुछ नहीं कहती आंखों की आंसुओं की सैलाब में आधुनिकता को बयान कर देती ।इन आंसुओं के संकेत कोई नहीं समझता ,क्योंकि हम इतने पत्थर दिल ,संवेदनहीन हो गए हैं कि किसी तकलीफ़ को समझकर न समझने,जानने का नाटक करते हैं, अनजान बने रहते हैं लेकिन आज उस बृद्ध महिला की बारी थी कल ...
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