संत रैदास की हत्या क्यों हुई थी?प्रसिद्ध यादव।
पत्थर मूरति कछु न खाती, खाते बांभन चेला रे।
जनता लूटति बांभन सारे, प्रभु जी देति न अधेला रे।। संत रैदास के इसी भजन के लिए मनुवादियों ने हत्या की थी!- प्रसिद्ध यादव।
जब झूठ ,ढोंग, पाखंड की कोई पोल खोलता है और सच्चाई सामने आती है तो पाखंडियों को तिलमिलाना स्वभाविक है। ऐसे पोस्ट लिखने वाले खूब ट्रोल भी होते हैं, गालियां भी सुनते हैं, फिर भी प्रेरणादायक है। पाखंड विरोधी डाभोलकर की भी हत्या कर दी गई थी। यही है ऐसे लोगों के धर्म का मर्म। हमें वैज्ञानिक सोच व तर्कवादी बनना होगा। पंडित राहुल संस्कृतयां ब्राह्मण होते हुए भी वोल्गा टू गंगा पुस्तक में पाखंड ,अंधविश्वास पर जोरदार प्रहार किया था। स्वामी सहजानंद सरस्वती उच्च वर्ग के होते हुए भी भूमि सुधार के लिए आंदोलन किये थे और जमींदारी उन्मूलन में अहम भूमिका निभाई थी।
दिल्ली के तुगलकाबाद में सिकंदर लोदी ने 15वीं शताब्दी में गुरु रविदास के नाम पर मंदिर बनाने के लिए तकरीबन 600 से 700 एकड़ जमीन दी थी. उसके कुछ साल बाद ही वहाँ पर संत रविदास जी का मंदिर बनाया गया था.
पूरे लोदी वंश और मुग़ल वंश के समय जो मंदिर सुरक्षित रहा और तो और जिस मंदिर को अंग्रेज़ों ने भी नहीं छेड़ा, विभिन्न पार्टियों की सरकारों के समय भी मंदिर शान से खड़ा रहा. उसे तोड़ने का काम भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने किया.
केन्द्र की भाजपा सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस मिश्रा और जस्टिस शाह से मिलीभगत करके संत रविदास के 600 पुराने मंदिर को मिट्टी में मिला दिया. अब सवाल यह है कि ब्राह्मणों को इस मंदिर से इतनी घृणा क्यों है? मैं मानता हूँ कि संत रविदास की केवल यह चार पंक्तियाँ है, जो ब्राह्मणवाद को हिला दिया था.
जीवन चारि दिवस का मेला रे।
बांभन झूठा, वेद भी झूठा, झूठा ब्रह्म अकेला रे।।
मंदिर भीतर मूरति बैठी, पूजति बाहर चेला रे।
लड्डू भोग चढावति जनता, मूरति के ढिंग केला रे।।
पत्थर मूरति कछु न खाती, खाते बांभन चेला रे।
जनता लूटति बांभन सारे, प्रभु जी देति न अधेला रे।।
पुन्य-पाप या पुनर्जन्म का, बांभन दीन्हा खेला रे।
स्वर्ग-नरक, बैकुंठ पधारो, गुरु शिष्य या चेला रे।।
जितना दान देवे गे जैसा, वैसा निकलै तेला रे।
बांभन जाति सभी बहकावे, जन्ह तंह मचै बबेला रे।।
इसी गीत के कारण ब्राह्मणो ने संत रविदास की हत्या कर दी थी और आज उनकी 600 साल पुरानी मंदिर को तोड़ दिया है.। पहले संत रैदास जी की हत्या और कई शताब्दी बाद उनके मंदिर को तोड़ देना कैसा धर्म है? वंचित समाज को अपनी दशा ,दुर्दशा के बारे में गहन चिंतन करना चाहिए और अपने उज्जवल भविष्य की ओर बढ़ना चाहिए।
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