तेरे हिस्से में केवल फूल मेरे हिस्से शूल ये कैसा है दस्तूर ? ये कैसा है उसूल ? (कविता )-प्रसिद्ध यादव।
तेरे हिस्से में केवल फूल
मेरे हिस्से शूल
ये कैसा है दस्तूर ?
ये कैसा है उसूल ?
कभी सोचा है ?
हम वंचितों के हक - हकूक के लिए
क्यों रहते हैं चिंतित ?
हम भी औरों की तरह
पैसे बनाने के लिए
व्यापार या रोजगार किये होते
किसी स्वामी के यहाँ जाकर
स्वामिभक्ति किये होते
किसी दफ्तर में चपरासी होते
किसी बड़े आदमी के पास
चाटुकारिता किये होते ।
चंद पैसे होते जेब में ।
जो औरों के लिए जीता है
उसे कमतर न समझो
उसकी आवाज़ को क्रांति समझो
दो कदम साथ न चलो
कोई बात नहीं
पथ के बाधा न बनो ।
सिर्फ सांसें लेना जिंदगी नहीं
उम्र काटना जिंदगी नहीं
भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव
की क्या उम्र थी ?
दुष्यंत, भारतेंदु कौन लम्बी उम्र जिये ?
जितना भी जिये ,खूब जिये
देशहित, जनहित के लिए जिये
आज भी बड़ी शिद्दत से लोग
करते हैं याद
इनसे हुआ है हमारा देश आबाद।
माना कि आज झूठे मक्कारों की
बढ़ गया है मान -सम्मान।
धन ,दौलत के सामने फीका हुआ ईमान ।
यह गुरुर भी एक दिन टूटेगा
आलीशान महल मिट्टी में मिटेगा ।
बस!रह जायेगा तेरा सत्यकर्म ।
रखो मतलब सामाजिक सरोकारों से भी
अंतिम पायदान पर रहने वाले से भी
उसे मुख्य धारा से जोरो भी
कभी तुम भी थे वहीं पर
कोई तुझे भी लाया है यहाँ ।
मत देख किसी को तड़पते हुए
थोड़ी सी सुख -सुविधा कर दे कम
यही से हो जाये सबके रास्ते सुगम ।
तेरे हिस्से में केवल फूल
मेरे हिस्से शूल
ये कैसा है दस्तूर ?
ये कैसा है उसूल ?
भाग्य के नाम लेकर इठलाने वाले
ये सब तेरी झूठ और है लूट
भोले -भाले को मूर्ख बना कर
करते अपने सीधा उल्लू
कहीं जाकर डूब मर जाते
लेकर पानी भर चुल्लू।
कभी सोचा है?
हम वंचितों के हक -हकूक के लिए
क्यों रहते हैं चिंतित ?
तेरे हिस्से में केवल फूल
मेरे हिस्से शूल
ये कैसा है दस्तूर ?
ये कैसा है उसूल ?
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