झूठ जल्द ही जमींदोज हो जाती है।
वो झूट बोल रहा था बड़े सलीक़े से
मैं ए'तिबार न करता तो और क्या करता
- वसीम बरेलवी।
झूठ अल्पायु होती है।लेकिन लोग सच छुपाने के लिये बहाने बनाकर झूठ पर झूठ बोलते हॅ ।झूठ बोलने वाले के चरमसीमा तक सुनना चाहिए। बहाना बनाकर झूठ बोलने वाला व्यक्ति यह समझता हॅ कि हम जिससे झूठ बोल रहे हॅ वह नादान हॅ बेवकूफ हॅ लेकिन जब दुसरे व्यक्ति को सच पता लगने लगता हॅ और वह झूठ बोलने वाले व्यक्ति कि क्षमता देखता हॅ।झूठ का एक पहलू यह भी हॅ कि जब हम किसी व्यक्ति को झूठ बोलते हॅ और जब हमें इस बात का एहसास होता हॅ तो उस एहसास के होने से पहले ही दुसरा व्यक्ति हम पर भरोसा करना छोड चुका होता हॅ ।चाहे वो आत्मसमर्पण हीं क्यों न कर ले। झूठा झूठ की साक्ष्य जुटाने में इतना दलदल में फंस जाता है कि फिर उसे वहां से निकलना मुश्किल हो जाता है।यही साक्ष्य उसके गले का फ़ांस बन जाता है। तथ्य के आगे कोई कथ्य काम नहीं आता है। झूठे तसल्ली दिल को कभी न दें ,सच रौंद देता है।झूठ के हजारों शब्द सच के एक शब्द भारी पड़ जाता है।
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