जब बदहाल ही बेमिसाल है-प्रसिद्ध यादव।
तब बदहाल किसे कहते हैं !
महंगाई चरम पर, बेरोजगारों की फौज
दुष्कर्मियों, हत्यारों की मौज ।
ढ़ोंगलीला ,आडम्बर ,दिखावा,छलावा
किसानों के छाती पर गाड़ी की पहिया
महिला पहलवानों को सड़क पर घसीटा
साधु संत अब कर रहे दुष्कर्म
मंदिरों की जगह सलाखों में पहुंचा
काला धन वापस की जगह
उजला धन फुर्र !
वाह रे चौकीदार बेमिसाल !
बिकती राष्ट्र संपदा
यारों पर हैं कुर्बान
जुमले पर चढ़ कर आई देश की विपदा ।
अयोध्या में राम की जमीन की भी की दलाली
सच ही कहता था - व्यापार मेरे खून में है ।
नफरत के बीज है दिन रात बोता
रंगा बिल्ला के आगे कैसे
नतमस्तक है लाल काला खड्डा।
मदारी का खेल देखा दुनिया
साष्टांग करता सर पटक
कभी भंगी के पांव पखारे
कभी टैगोर के रूप बनाये
कभी बजरंगबली के गदा उठाये
कभी बुद्ध के दे दुहाई
सेना शहीद हो जाये हेलीकॉप्टर बिना
ढोंगी चढ़कर मौज उड़ाये ।
सोचो ऐसे निर्दयी को कौन सी सबक सिखाएं?
जब बदहाल ही बेमिसाल है
तब बदहाल किसे कहते हैं !
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