अक्ल के अंधा न बनकर , संविधान की ताकत को समझें !-प्रसिद्ध यादव।


  

आज लोकसभा में 131 सदस्य sc st के हैं।इसमें 84 sc के और 47 हैं। भारत के विधानसभाओं में 4120 सदस्यों में से 1168 सीटें sc st के हैं बिहार विधानसभा में 243 में से 38 sc और 2 st के लिए हैं।ये सब संविधान से मिला  न कि किसी बाबा के चमत्कार या घंटा बजाने से मिला है लेकिन अभी भी कुछ लोगों को लगता है कि ढोंगियों के भभूत , कोई भगवान, देवी देवता की कृपा से और ताबीज़ से जीवन में बदलाव आ जायेगा तो वो निश्चित रूप से अक्ल का अंधा है।

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 341 (Article 341) की। अनुच्छेद-341 में राष्ट्रपति को यह अधिकार दिया गया है कि वह विभिन्न जातियों और कबीलों के नाम एक विशेष सूची में शामिल कर दें। 


1950 में तत्कालीन राष्ट्रपति ने एक अध्यादेश के जरिए एक अनुसूची जारी की, जिसमें पिछड़ी जातियों या जनजातियों के भागों को शामिल किया गया था। बाद में इन सूचीबद्ध जातियों और जनजातियों को ही अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति कहा गया। 

इस अनुच्छेद में दो मुख्य प्रावधान हैं, पहले क्लॉज में बताया गया है कि राष्ट्रपति राज्य या केंद्र शासित प्रदेश की किसी जाति को सार्वजनिक अधिसूचना के जरिए अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति में शामिल कर सकते हैं। 

जबकि, इसके दूसरे क्लॉज में बताया गया है कि भारतीय संसद राष्ट्रपति की सार्वजनिक अधिसूचना द्वारा अनुसूचित जाति या जनजाति में शामिल किसी भी जाति या समुदाय को इस सूची से बाहर निकाल सकते हैं।  

एससी-एसटी को प्रोन्नति में आरक्षण देने के एम नागराज के फैसले में 2006 में पाँच जजों ने संशोधित संवैधानिक प्रावधान अनुच्छेद 16(4)(ए), 16(4)(बी) और 335 को तो सही ठहराया था लेकिन कोर्ट ने कहा था कि एससी-एसटी को प्रोन्नति में आरक्षण देने से पहले सरकार को उनके पिछड़ेपन और अपर्याप्त प्रतिनिधित्व के आँकड़े जुटाने होंगे।

इस मामले में न्यायालय ने कहा था कि राज्य अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों को सरकारी नौकरी के दौरान पदोन्नति में आरक्षण तभी दे सकती है जब आँकड़ों के आधार पर यह तय हो कि उनका प्रतिनिधित्व कम है|

अटॉर्नी जनरल ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 341 व 342 में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजातियों आदि को निर्धारित करने के लिये राष्ट्रपति को सशक्त किया गया है। एजी ने ज़ोर देकर कहा कि  नौकरियों में पदोन्नति अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजातियों के लिये “आनुपातिक प्रतिनिधित्व” के आधार पर होना चाहिये। 

न्यायालय ने कहा कि सरकार की राय मात्रात्मक डेटा पर आधारित हो तभी प्रोन्नति के लिये विचार होना चाहिये| न्यायालय ने पूछा कि क्या क्रीमी लेयर को बाहर रखना चाहिये| सरकार को इस मुद्दे पर विचार करना चाहिये|

हालाँकि एजी ने कहा कि एससी/एसटी जो सदियों से भेदभाव के शिकार हैं, अनुच्छेद 16 (4) (ए) के तहत सकारात्मक कार्रवाई के हिस्से के रूप में पदोन्नति में आरक्षण के हकदार हैं। 

वेणुगोपाल ने न्यायालय को बताया कि सरकार सार्वजनिक नौकरियों में एससी/एसटी के पदोन्नति के लिये 22.5% (अनुसूचित जातियों के लिये 15% तथा  अनुसूचित जनजातियों के लिये 7%) पदों को आरक्षित करना चाहती है।




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