चीथड़ों में पलती गरीबी ! (कहानी )- प्रसिद्ध यादव।
भगमतिया किसी तरह चिथड़ी कपड़ों से अपनी बदन ढकी हुई थी। खाना बनाने के लिए जलावन चुन रही थी, सड़कों पर गाड़ियों की काफिला जा रही थी, नेता ,पुलिस, मीडिया ,भक्त,आमजन की रेला लगी हुई थी। मीडिया बाबा के एक एक शॉट ले रही थी, बिग ब्रेकिंग न्यूज़, एक्सक्लुसिव न्यूज़ न जाने कौन कौन सी हेड लाइन से न्यूज़ प्रसारित हो रहा था।भगमतिया ये सब ढ़ोंगलीला देख रही थी और हंस रही थी, शायद वो सदियों से गरीबी, जिल्लत जी जिंदगी उनके परिजन देखे थे और अब वो जी रही थी। मीडिया और राजनेताओं की नज़र इस भगमतिया पर जरूर पड़ी होगी ,लेकिन ये किसी ख़बर की हिस्सा नहीं थी। रहे भी कैसे ? इससे कौन भाग्य की पर्ची निकलती और कौन चमत्कार होता ? भीड़ रिकॉर्ड कायम कर रही थी और लोगों में खुशी थी कि आजतक किसी राजनेता की रैली में भीड़ नहीं लगी होगी ।लोग पागल बने हुए थे बाबा के दर्शन के लिए ।बाबा ने हकीकत बात कहकर संबोधित किया, लोग झूम उठे। मिसाईल मैन अब्दुल कलाम पालीगंज में किसानों के बीच गये थे ,किसानों को वैज्ञानिक विधि से खेती करने के लिए बताने के लिए लेकिन उस समय कोई भीड़ नहीं थी और ना ही मीडिया का इतना जमावड़ा लगा था क्योंकि वहाँ किसी की फूक मारने से किसी की भला नहीं होने वाला था।
मेरी नज़र भगमतिया पर पड़ी ।मैं रुक गया और पूछा कि " तुम बाबा के पास पर्ची निकालने के लिए क्यों नहीं गयी ? लोग दूर दूर से आ रहे हैं और तुम बगल में रहकर नहीं गयी !" बाबूजी ! अगर ऐसे बाबाओं की पर्ची से गरीबी खत्म हो जाती तो हमलोग इस दुर्दशा में नहीं रहते।ये सब ढोंग से ज्यादा कुछ नहीं है बाबूजी !" पढ़ती हो ? " जी बाबुजी! 9 वीं में ।स्कूल से आने के बाद शाम के खाना बनाने के लिए जलावन बीन रही हूँ। तुम किसे बाबा मानती है? वो बोली - मैं नहीं पूरी दुनिया अम्बेडकर साहेब को बाबा मानती है, बाकी सब झूठ है। बाबा साहेब की 22 प्रतिज्ञा जानती है ? जी बाबुजी ! इस तरह है -
नागपुर में दीक्षा भूमि में 15 अक्टूबर 1956 को डॉ आंबेडकर ने साढ़े 3 लाख से ज्यादा लोगों के साथ हिंदू धर्म त्याग दिया। उन्होंने इस मौके पर 22 प्रतिज्ञाएं कीं थीं
1. मैं ब्रह्मा, विष्णु और महेश में आस्था नहीं रखूंगा और उनकी पूजा नहीं करूंगा।
2. मैं राम और कृष्ण में आस्था नहीं रखूंगा, जिन्हें भगवान का अवतार माना जाता है। मैं इनकी पूजा नहीं करूंगा।
3. ‘गौरी’, गणपति और हिंदू धर्म के दूसरे देवी-देवताओं में न तो आस्था रखूंगा और न ही इनकी पूजा करूंगा।
4. मैं भगवान के अवतार में विश्वास नहीं करता।
5. मैं न तो यह मानता हूं और न ही मानूंगा कि भगवान बुद्ध विष्णु के अवतार थे। मैं इसे दुष्प्रचार मानता हूं।
6. मैं न तो श्राद्ध करूंगा और न ही पिंड दान दूंगा।
7. मैं कोई ऐसा काम नहीं करूंगा, जो बुद्ध के सिद्धांतों और उनकी शिक्षाओं के खिलाफ हो।
8. मैं ब्राह्मणों के जरिए कोई आयोजन नहीं कराऊंगा।
9. मैं इंसानों की समानता में विश्वास करूंगा।
10. मैं समानता लाने के लिए काम करूंगा।
11. मैं बुद्ध के बताए अष्टांग मार्ग पर चलूंगा।
12. मैं बुद्ध की बताई गई पारमिताओं का अनुसरण करूंगा।
13. मैं सभी जीवों के प्रति संवेदना और दया भाव रखूंगा। मैं उनकी रक्षा करूंगा।
14. मैं चोरी नहीं करूंगा।
15. मैं झूठ नहीं बोलूंगा।
16. मैं यौन अपराध नहीं करूंगा।
17. मैं शराब और दूसरी नशीली चीजों का सेवन नहीं करूंगा।
18. मैं अपने रोजाना के जीवन में अष्टांग मार्ग का अनुसरण करूंगा, सहानुभूति और दया भाव रखूंगा।
19. मैं हिंदू धर्म का त्याग कर रहा हूं जो मानवता के लिए नुकसानदेह है और मानवताके विकास और प्रगति में बाधक है क्योंकि यह असमानता पर टिका है। मैं बौद्ध धर्म अपना रहा हूं।
20. मेरा पूर्ण विश्वास है कि बुद्ध का धम्म ही एकमात्र सच्चा धर्म है।
21. मैं मानता हूं कि मेरा पुनर्जन्म हो रहा है।
22. मैं इस बात की घोषणा करता हूं कि आज के बाद मैं अपना जीवन बुद्ध के सिद्धांतों, उनकी शिक्षाओं और उनके धम्म के अनुसार बिताऊंगा।
उसकी इस जानकारी से मैं गस्त खा गया।ये तो गुदरी के लाल निकली ।मेरा यात्रा वही समाप्त हो गया। आज अच्छे अच्छे डिग्रीधारी, गोल्डमेडलिस्ट ,सोशल एक्टिविस्ट को भी ये प्रतिज्ञा नही मालूम होगी।कुछ अम्बेडकर परिचर्चा करने वाले प्रशिक्षकों को भी यह मालूम नहीं है और न अम्बेडकर के रास्ते पर चलते हैं।धन्य है भगमतिया!
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