बढ़ती रेल दुर्घटनाएं , चिंताजनक ! -प्रसिद्ध यादव।

   


भारत में बढ़ती रेल दुर्घटनाएं चिंता का बिषय है। एक तरफ हम वन्दे मातरम जैसे दूरगामी ट्रेनों के परिचालन कर रहे हैं, बुलेट ट्रेन की ओर अग्रसर हैं तो दूसरी तरफ ट्रेन दुर्घटनाग्रस्त हो रही हैं। ओडिशा बालासोर में जहाँ करीब 300 लोग हताहत हुए वही बंगाल में दो मालगाड़ी की टक्कर हो गई। बांकुड़ा के ओंडा स्टेशन की लूप लाइन पर बिष्णुपुर की ओर एक मालगाड़ी खड़ी थी. इसी दौरान बांकुड़ा से विष्णुपुर जा रही एक और मालगाड़ी लूप लाइन में घुस गई. चलती मालगाड़ी खड़ी मालवाहक ट्रेन के पिछले हिस्से से टकरा गई. इसकी गति तेज होने के कारण उसका इंजन दूसरी मालगाड़ी के ऊपर चढ़ गया. साथ ही कई डिब्बे मुड़े हुए भी हैं.   हालांकि इस मे जानमाल की क्षति नही हुई है, लेकिन घटना भयावह है। दुर्घटनाओं की वजह क्या है? कहीं निजीकरण या  परिचालन के स्टाफ में कमी तो नहीं है ? स्टाफ की कमी से निर्धारित घंटे से अधिक चालक, गार्ड, स्टेशनमास्टर, कंट्रोलर  काम करने से  प्रतिकूल प्रभाव तो नहीं पड़ रहा है? अगर ऐसा है तो यह सरकार की नीतियों में दोष है । सरकार को  क्षमता के अनुरूप कर्मचारियों को बहाल  करना चाहिए। सरकार को जापान से सीखना चाहिए, वहां कितनी तेजी से ट्रेन चलती है और दुर्घटना न के बराबर होती है। जापान में हर 3 मिनट के अंतराल पर एक बुलेट ट्रेन चलती है. सबसे तेज होन के बाद भी आज तक इनकी वजह से कोई दुर्घटना नहीं हुई  है. इन ट्रेनों पर एक एडवांस सेफ्टी सिस्टम लगा हुआ है. इसमें आधुनिक सेंसर लगे हुए हैं, जो भूकंप व प्राकृतिक आपदा का पहले ही पता लगाने में सक्षम हैं और ऐसी आशंका होने पर ट्रेन को ये खुद ही रोक लेते हैं. भारतीय   रेलवे में इतने सारे गैर-  रेलवे के राजनीतिक लोग सदस्य, अध्यक्ष बने हुए होते हैं, जिन्हें रेलवे के बारे में कोई समझ नहीं होती है, केवल रेलवे के सुखभोग के लिए खानापूर्ति करते हैं। रेलवे  के काम की गुणवत्ता ठेकेदारों, अधिकारियों, नेताओं के कमीशनखोरी, रिश्वतखोरी और मुनाफाखोरी में चली जाती है। अब ऐसे में ट्रेनों की दुर्घटनाग्रस्त  होना  लाज़मी है।।

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