जब रग - रग में भेद है ! तब कहो ! कैसे हम एक हैं ? ( कविता ) -प्रसिद्ध यादव।

  जब रग - रग में भेद है !

तब कहो  ! कैसे हम एक हैं ?


न साथ बैठ सकते ,न खा सकते 

न नज़र उठाकर देख सकते ।

खुद को समझ बैठे स्वयम्भू ।

शेष क्या अवशेष है ?

जब रग - रग में भेद है !

तब कहो  ! कैसे हम एक हैं ?

चमड़ी की रंग से है भेदभाव 

 वर्ग ,जाति, गोत्र से है मनमुटाव ।

कहो ! कैसे हम अनेक हैं ?

जब रग - रग में भेद है !

तब कहो  ! कैसे हम एक हैं ?

तेरे जैसे ना हम पाखंड करते हैं

प्रभु के नाम बेचकर धंधे चलाते हैं।

निर्जीव से आस्था  के ढोंग  रचाते हो 

सजीव से घृणा करते हो ।

क्यों इतना मनभेद है?

जब रग - रग में भेद है !

तब कहो  ! कैसे हम एक हैं ?

गैर - बराबरी जितनी है यहाँ

दुनिया में और है कहाँ ?

कहते हो महान हैं 

ऐसे तुच्छ है कहाँ ?

तेरे रग -रग में गुरुर है!

जब रग - रग में भेद है !

तब कहो  ! कैसे हम एक हैं ?

मेरा बोलना -लिखना

हंसना - खेलना  भी 

नहीं तुझे भाता 

सवाल करूँ तो शामत !

सवालों का जवाब दूँ तो आफ़त !

कहो ! क्यों हमसे खेद है?

जब रग - रग में भेद है !

तब कहो  ! कैसे हम एक हैं ?

देश के प्रथम नागरिक का भी

मंदिर में प्रवेश निषेध है।

अगर कर गया प्रवेश 

फिर गंगाजल से 

क्यों होता अभिषेक है?

जब रग - रग में भेद है !

तब कहो  ! कैसे हम एक हैं ?

तलवे चाटना छोड़ निश्चर के

अपनी ताकत पहचान ले ।

दाता होकर भी 

क्यों बना याचक है?

जब रग - रग में भेद है !

तब कहो  ! कैसे हम एक हैं ?


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