नीतीश की तीर क्या भाजपा को चुभेगी !- प्रसिद्ध यादव।
पटना में महागठबंधन की बैठक को भाजपा ने ' ठग्स ऑफ हिंदुस्तान " ," फोटो सेशन " ," भ्रष्टाचारियों का मिलन " , " ठगबंधन " आदि न जाने किस - किस संज्ञाओं से नामकरण किया। यह भाजपा की हताश, निराशा का परिचायक है। 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को बिहार में 22 सीटें मिली थी और इनके सहयोगियों को 7 थी । बीजेपी ने केवल 31.0% वोट जीते, जो आजादी के बाद से भारत में बहुमत वाली सरकार बनाने के लिए पार्टी का सबसे कम हिस्सा है, जबकि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) का संयुक्त वोट हिस्सा 38.5% था। साल 2019 के लोकसभा चुनाव की ही चर्चा करें तो बीजेपी ने महज 43 फीसदी वोट पाकर लोकसभा की 300 से ज्यादा सीटों पर कब्जा जमा लिया। वहीं 57 प्रतिशत वोट उसके खिलाफ पड़े थे। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इसी वोट बैंक यानी 57 प्रतिशत पर निशाना साधा है। नीतीश कुमार की 16 सीटें हैं और इसी 57 फ़ीसदी में जदयू की वोट मिलकर करीब 59 फ़ीसदी हो गई है।अब एनडीए और महागठबंधन के अनुपात 41 -59 हो गया है। अब ऐसे में 2024 के चुनाव में भाजपा की स्थिति क्या होगी ? समझ सकते हैं। भाजपा की कोशिश है कि मुकाबला कम से कम 49 -51 का हो जाये तो कुछ उपाय हो ,लेकिन असम्भव लगता है। भाजपा कर्नाटक में खूब हिन्दू कार्ड खेला, लेकिन मुँह को ही खाई है। बिहार विधानसभा 2025 के ही परिणाम को देखें तो अनेक ऐसे संसदीय क्षेत्र हैं जहां भाजपा के सांसद हैं लेकिन उस क्षेत्र में एक भी सीट एनडीए नही जीत पाई है, जबकि उस समय नीतीश भाजपा के साथ ही थे ।वो संसदीय क्षेत्र राजधानी के पाटलिपुत्र, बक्सर , शाहबाद प्रमंडल के क्षेत्र हैं। भाजपा नेतृत्व इन क्षेत्रों के सांसदों की उम्मीदवारी बदलने की मूड में है लेकिन इससे कोई खास फायदा नहीं होगा।उधर बीजेपी भले ही विपक्षी एकता की इस मुहिम को 'भ्रष्टाचार में डूबी पार्टियों का ठगबंधन' करार दे रही हो। या फिर ये कहना कि इन दलों की कोई सामान्य नीति या विचारधारा नहीं है और चुनाव जीतने के लिए झूठे वादे करते हैं। ऐसा सोचना समझ लीजिए अपने आपको धोखा देने जैसा ही है। भाजपा सम्राट चौधरी को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर कुशवाहा, कोइरी को अपने पाले में लाने का प्रयास कर रही है और यही सम्राट को दिवास्वप्न हो गया कि भाजपा इन्हें बिहार की कमान सौंपेगी।यूपी में यही भ्रम मौर्य को हुआ था ।उपेंद्र कुशवाहा भी यही ख्वाहिश पाले हुए थे लेकिन अब वे न घर के है न घाट के। मांझी एनडीए के साथ हो गए हैं।साहनी एनडीए के साथ हो सकते हैं लेकिन लगाम भाजपा की रहेगी। चिराग और पारस सहमे हुए हैं।हालंकि, बीजेपी की कथनी और करनी में अंतर तो इसी बात से लगा सकते हैं कि बीजेपी के मुख्य रणनीतिकार अमित शाह का चुनावी टारगेट 400 से घटकर 300 सीट पर आ गया है। पटना में हुई विपक्षी एकता बैठक की महत्ता इसलिए भी बढ़ गई कि तमाम दलों ने 'भाजपा हटाओ' मुहिम को गंभीरता से लिया। सभी दलों ने अपने-अपने शीर्ष नेताओं को इस बैठक के लिए भेजा। आज की तारीख में बीजेपी के लिए इन दिग्गज नेताओं का एक मंच पर आना किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं है।
नीतीश कुमार के महागठबंधन के संयोजक बनते ही भाजपा की बेचैनी बढ़ गई है। महागठबंधन की अगली बैठक शिमला में होगी जहाँ सीटों की बटवारा तय होगी।महागठबंधन को 2024 के चुनाव में कुछ नेताओं के सीटों पर वाक ओवर दे देना चाहिए, भले ही वो गठबंधन के हिस्सा न हो, लेकिन भाजपा विरोधी हैं ।जैसे मायावती, ओबैसी ,जयंत चौधरी, कुमार स्वामी, चंद्रशेखर रावण आदि के सीटों पर एक का मुकाबला एक पर हो तो महागठबंधन अपनी रणनीति में ज्यादा सफल होगी। महागठबंधन में त्याग से ही नीतीश कुमार की तीर सही निशाने पर लगेगी।
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