व्यवहारिक जीवन में जो काम आये, उसे ही प्राथमिकता से करें।-प्रसिद्ध यादव।
अमूनन हम ऐसे कार्यों को करने में तल्लीन रहते हैं, जिसे व्यवहारिक ,सामाजिक जीवन में कोई ज्यादा मूल्य नहीं होता है। ऐसे कार्यों को प्राथमिकता न दें। अगर कोई नॉकरी ढूंढने जाता है या शादी के लिए तो उसके बॉयोडाटा में क्या मेंशन रहता है ?उसकी योग्यता, डिग्री, अनुभव आदि ।कभी न कोई बताता है कि कितनी बार कांवर यात्रा ,शोभा यात्रा, नवरात, कितने वक़्त के नवाज पढ़ते,कितने दिन रोजा रखते ,कितने व्रत करते ,उपवास रखते हैं? ये धार्मिक आस्था है, इसे रखें,लेकिन जिसे जीवन में व्यवहार में जरूरत है, उसे प्राथमिकता में रखें। शादी व्याह के लिए वर बधू ढूंढने में कम्प्यूटर का,विज्ञान का, गणित के ज्ञान को परखते हैं।वहां व्रत त्योहार को प्राथमिकता रखने वाले इसे पूछते हैं।सभी को पता है कि ये आस्था रखने से परजीवी को छोड़कर किसी का घर नहीं चलने वाला है।घर चलाने के लिए अर्थोपार्जन जरूरी है और यह श्रम करने से आएगा।।आज धर्म के महाज्ञानी पूर्व जन्म से लेकर अगले जन्मों तक की जानकारी दे देंगे लेकिन उनसे पांच भारतीय वैज्ञानिकों के नाम पूछ दीजिये,गणतिज्ञों के बारे में पूछ दीजिये सर झुका लेंगे। ताज्जुब है कि जो चीज हमें जानना,सीखना चाहिए वो नहीं सीखते हैं और जो अनुपयोगी है, उसके लिए दिमाग खपाते रहते हैं।याद कीजिए सुकरात को सत्य को बताने के लिए ज़हर पीना पड़ गया था, गैलेलियो को सूर्य नही पृथ्वी परिक्रमा करती है, कहने के लिए शरीर को तोड़ मरोड़ कर हत्या कर दी गई थी, रैदास को ढोंग के खिलाफ बोलने पर टुकड़े टुकड़े कर दिया गया था, सत्य को बताने के लिए हजारों बौद्ध भिक्षुओं की हत्या कर दिया गया था लेकिन क्या सत्य को कहना छोड़ दिया था? आज फिर चारो तरफ ढोंग ,पाखंड का बोलबाला हो गया है।इसे खत्म करने के लिए रैदास, सुकरात, गैलेलियो बनना होगा,नहीं तो काहिल,परजीवियों के राज आने से कोई नहीं रोक सकता है और फिर पश्चाताप करने से कोई फायदा नहीं होगा।
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