रिश्ते मिलावटी मिठाई की तरह हो गया है।

   

ऐसे सम्बंध, रिश्ते को तिलांजलि दे दें।

मन में कुछ और मुंह में कुछ और वाले से संभल कर रहें ,धोखा होना तय है।

कोई भी त्योहार मुझे कैदी बना देता है।

आम दिन मैं स्वच्छंद विचरण करने वाला व्यक्ति किसी भी त्योहार में मुझे कैदी बना देता है।मुझे भीड़भाड़ से सख़्त नफ़रत है।वो भीड़ जहां कुछ लेना न देना। आस्था को कब के तिलांजलि दे दिया। रत्ती भर भी मुझे कोई आस्था नहीं है।ये जीवन संघर्ष और ज्ञान से चलता है और आस्था काहिल ,निकम्मा बना देता है।मैं औरों को अपनी तरह नहीं बना सकता हूँ, लेकिन मैं औरों की तरह नहीं बन सकता हूँ।यह मेरे वश में है।जितनी सकून एकाग्रचित्त होकर,शांति से रहने में मिलता है, उतनी भीड़भाड़ में नहीं।बचपन से मेरी यही आदतें हैं।अनेक मित्र अपने पंडाल में आने के लिए आमंत्रित किए, लेकिन मैं अपने स्वभाव के कारण मजबूर हो जाता हूँ।इसे अन्यथा न लेंगें।मैं अपने मन के काम करता हूँ।यह जिद्दी स्वभाव के कारण किसी का नहीं सुनता हूँ।कोई मुझसे पंगा ले लिया तो अंतिम सांस तक उसे नहीं छोड़ता हूँ। यहां हम कट्टर हैं और मैं किसी भी कीमत पर कोई समझौता नहीं करता हूँ।सबसे बड़ी बात है डर।इसे एक बार मन से निकलना जरूरी है।सामने वाला कौन कितना ताकतवर है, यह नहीं सोचता हूँ ।त्योहार मनाना चाहिए।यह जीवन के व्यस्तता के बीच कुछ उमंग भरने का समय होता है।अपनों से मिलने का अवसर भी।लेकिन सवाल है कि अब अपनापन है कहाँ?अपनापन ,रिश्ते,प्यार सब बनावटी,मिलावटी हो गया है मिठाई की तरह, जो खाने में मीठा लगता है लेकिन अंदर ज़हर ही रहता है।मिथक कहानियां सुन सुन कर दिमाग खराब हो जाता है।आदमी दिन पर दिन शिक्षित हो रहा है लेकिन सोचने की शक्ति खत्म हो रहा है।मानसिक गुलामी से मानसिक रोगी होता जा रहा है।तर्कशक्ति शून्य हो गई है।जो किसी ने कहा दिया, उसे अंतिम सत्य मान लेता है।फिर आदमी और जानवर में क्या अंतर रह जाता है।

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