एक तिनका ( कविता ) मैं घमण्डों में भरा ऐंठा हुआ। -कवि अयोध्या सिंह हरिऔध ।


  

जो घमंड में चूर रहते हैं धन के, पद, पावर,बल ,छल के उन्हें आंखें खोलने के लिए कवि अयोध्या सिंह हरिऔध की 12 पंक्तियों की कविता ही काफी है।

 घमण्डों में भरा ऐंठा हुआ।

एक दिन जब था मुण्डेरे पर खड़ा।

आ अचानक दूर से उड़ता हुआ

एक तिनका आंख में मेरी पड़ा।


मैं झिझक उठा, हुआ बेचैन-सा 

लाल होकर आंख भी दुखने लगी 

मूंठ देने लोग कपड़े की लगे

ऐंठ बेचारी दबे पांवों भगी।


जब किसी ढब से निकल तिनका गया 

तब 'समझ' ने यों मुझे ताने दिए।

ऐंठता तू किसलिए इतना रहा 

एक तिनका है बहुत तेरे लिए।

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