पहले जातीय दंश को झेला, अब समाजवाद का मारा हूँ!-प्रसिद्ध यादव।
राजनीति संगठन और बोर्ड में दलबदलुओं की चलती हैं।
कर्तव्यनिष्ठ चुपचाप तमाशा देख रहे हैं।
इस दंश के भुगतभोगी देश में सदियों से करोड़ों लोग हैं और इस कुकृत्य को छुपाने के लिए धर्म की नॉटंकी होती है। जितनी भी सार्वजनिक क्षेत्र या निजी क्षेत्र हैं, वहां की स्थिति आज भी भयावह है। आज भी जिस सेवाओं में जाने के लिए साक्षात्कार है, उसमें बहुजनों को न्यूनतम अंक दिया जाता है, नतीजा या तो सेवा में आने से दूर हो जाते हैं या नीचे पायदान पर अपने कोटे में रहते हैं। सामान्य कटेगरी में आरक्षित वर्ग के कितने लोग पहुंच रहे हैं। ews 10 फ़ीसदी और सामान्य कटेगरी 50 फ़ीसदी कितनी हो जाती है? कांग्रेस हो या भाजपा दोनों के चाल चरित्र एक ही है और दोनों एक खास वर्ग के पोषक हैं। अरवल के इच्छनबिगह के बीरेंद्र राव साहेब जो लालू यादव के समधी हैं, आईएस के इंटरव्यू देने गये तो जाति पर सवाल करते हुए कहा था कि" अब यादव डीएम कलेक्टर बनेगा तो गाय ,भैंस कौन चरायेगा ?अन्तोगत्वा, इनकम टैक्स कमिश्नर के पद पर संतोष करना पड़ा था, इन्ही की बहू रागिनी है जो लालू यादव को किडनी दी है। मैं लेक्चरर पद के लिए इंटरव्यू देने गया था।उस इंटरव्यू के बोर्ड में मेरे एक गुरु भी मेरे बिषय के मेंबर थे।कॉलेज में जातिय दंश की पीड़ा के कारण उनसे सम्बन्ध ठीक नहीं थी ,मौका मिलते ही वसूल कर लिया। बिहार में 1994 में दारोगा में मैं सफल होकर इंटरव्यू में गया और मुझे अपनी जाति होने की कीमत चुकानी पड़ी थी।मुंबई में स्टेशन मास्टर के लिए कम्प्लीट किया ,लेकिन उन दिनों भी इंटरव्यू होता था और यहां भी यादव जाति होने की कीमत चुकाई है। तीनों जगह मंत्रालय बहुजनों की थी लेकिन नॉकरशाह कोई और था।मेरे जीवन के स्वर्णिम समय को कुचला गया।मैं औरों की तरह राजनीति सिफारिश कर सकता था और इसके लिए मुझे किसी अन्य की जरूरत नहीं थी।मैं खुद सक्षम था लेकिन मैं कभी भी किसी की सिफारिश पर कोई पद आज तक नहीं लिया ।मेरा स्वाभिमान मुझे कभी इजाजत नहीं देता है।आज राजद में संगठन में भाजपा के लिए काम करने वाले प्रदेश के सचिव पद पर विराजमान हैं लेकिन इनकी उपलब्धि ऊंचा है।वे शराब तस्करी में महीनों तक जेल में बन्द रहे।बीस सूत्री के जिला का संगठन हो गया और अब प्रखंड स्तर तक गठन होना है लेकिन मेरे जैसे निष्ठावान को जगह नहीं मिल सकता है, क्योंकि मैं किसी से सिफारिश नही कर सकता हूँ। अनेक निगम में बोर्ड का गठन हुआ लेकिन उसमें बनने की योग्यता क्या है?मुझे समझ नहीं आया ।जब सिफारिश के बिना कुछ सम्भव ही नहीं तो राजनीति क्यों।यहां कोई ब्राह्मणवादी व्यवस्था के शिकार नहीं है, बल्कि समाजवाद के शिकार हैं। ऐसे पदों पर अधिकांश दलबदलुओं को मनोनीत किया गया है और संगठन में भी उसे ही रखा गया है।एक व्यक्ति अन्य पद।समाजवाद का इससे अच्छा उदाहरण और क्या हो सकता है? आज अधिकांश पदधारकों से मेरी सीधी लड़ाई हुई है जो राजद के विरोध में थे।अब वैसे लोग के साथ हम कैसे रह सकते हैं?या वे मुझे कैसे रख सकते हैं ? अपनी ताकत और हुनर पर विश्वास रखता हूँ।अंतिम पायदान के लिए मेरी लड़ाई कभी कम न होगी।
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