मूढ़ी को कौन समझाये ? ( कविता ) -प्रसिद्ध यादव।

   मूढ़ी को कौन समझाये ?


जो समझाये 

उसी से उलझ जाये।

आत्मसमर्पण करने वाले को

आत्मसम्मान कहाँ से आये ?

जो स्वाभिमान को गिरवी रख आये।

न पूछो उसका हाल 

जो चरणों में किसी के नतमस्तक है।

आंसुओं बहाते ज़मीर बेच दी।

पद के लिए कुछ भी कर लोगे 

अपनों को कोठे पर रख दोगे!

गर्व से मुझे सीने मत दिखाओ 

कहीं जाकर चुल्लू भर पानी में डूब जाओ।

कितनी कीमत मिलती है कोठे की ?

मेहनतकश के जाकर ठाठ को देखो।

कैसे आजाद विचरण करते हैं 

आजादी की फिजाओं में ।

वो तोड़ दी है मानसिक गुलामी की बेड़ियाँ 

स्वच्छंद ,आनंद पल को बिताए 

मूढ़ी को कौन समझाये ?

बहकावे में आकर  

पुनरावृत्ति मत करवाओ 

कीड़े मकोड़े की तरह जिंदगी को न बनाओ।

याद करो उन पुरखों को 

तेरे ही लिए बलि हो गए

रैदास को टुकड़े टुकड़े कर दिए 

खता क्या थी इनकी 

पाखंडियों की पोल खोल दी।

हजारों बौद्ध भिक्षुओं को किसने 

मौत के घाट उतारा

काशी छोड़ कबीर मगहर क्यों गये थे?

   जगदेव बाबू ,गौरी लंकेश

  रोहित विमुला, दाभोल, पंसारी को

किसने मारा ?

अम्बेडकर ,कर्पूरी जी को 

किसने अपमानित किया ?

उत्तर ढूंढ मुझे बताना।

मूढ़ी को कौन समझाये ?

साथ बैठने की हैसियत रखते हो !

साथ खाने की बात तो दूर 

आज भी तुझसे पत्थर 

अपवित्र हो जाता है।

जयकारे लगाते चलते फिरते हो 

या अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारते हो ।

यही है सच्चाई 

तू मदारी के जमूरे हो 

कभी सलाम ठोकते 

कभी हाथ फैलाते हो 

इसे ही अपना भाग्य समझ इठलाते हो।

मूढ़ी को कौन समझाये ?

पाखंडी ,परजीवी ,निठल्ले को छोड़ो साथ 

कर्मवीर हो ,श्रम करो 

यही है तेरी पहचान

पढ़ो संविधान, बढ़ाओ ज्ञान 

अपने हक हकूक के लिए

हो जाओ तैयार

नहीं करना अब चिरौरी 

न हथजोरी

खुद को पहचान 

अपनी बना पहचान 

कौन तुमसे श्रेष्ठ है 

तू मूल है ,तू फूल है 

तभी तो शत्रुओं के शूल है


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