न रहती सुकून से न दूसरों को रहने देती । - प्रसिद्ध यादव।
न रहती सुकून से
न दूसरों को रहने देती ।
न जानें कहाँ से
ऐसी फ़ितरतें हैं पाई ?
हम नयनन से घायल होने वाले को
खंज़र क्यों दिखाती है?
तेरी लट में उलझा रहता हूँ
फिर उलझन में क्यों डालती है?
जब मुँह खोले तब
ज़हर ही ज़हर
चारों तरफ माहौल को
विषैला ही बनाती है।
इतनी नफ़रतें कहाँ से आई ?
क्या ख़ुद अमर - अजर समझी है ?
या कोई अमरत्व का वरदान पाई है ?
इस माटी का है क्या मोल?
फिर क्यों है आग लगाई ?
प्यार से नहीं मिलकर रह सकती
बिना नफ़रत के भी रह सकती
मदद के लिए नहीं उठे हाथ
बिना पैर खींचे भी रह सकती
स्वच्छंद गगन में उड़ने वाले को
जाल क्यों बिछाई ?
नहीं सुनी प्रेम धुन मोहन की
गीता सार ही सुन लेती
गोवर्धन पर्वत को उठाता हूँ
चक्र सुदर्शन भी रखता हूँ
शांति प्रिय का मतलब
कायर नहीं ।
जब चीर हरण का हुआ प्रयास
महाभारत भी कर देता हूँ।
मेरे अंदर भी है अंगड़ाई।
न रहती सुकून से
न दूसरों को रहने देती ।
न जानें कहाँ से
ऐसी फ़ितरतें हैं पाई ?
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