शत्रुओं को भी सम्मान दें,रस्सी जलने तक। -प्रसिद्ध यादव।
जीवन में शत्रु न हो तो जीवन में जंग लग जाती है, ऊर्जा क्षय हो जाता है, गतिहीन हो जाता है। मित्र आपको शब्बासी दे सकते हैं, मदद कर सकते हैं लेकिन क्षमतावान ,चौकन्ना तो आपको शत्रु ही बनाता है। आपके दिमाग की गुल बत्ती को वही जलाता है। इतिहास गवाह है कि कई लोग शत्रुओं, विरोधियों के कारण ही नायक बन गए। शत्रु आपको सोचने की क्षमता को बढ़ाने के लिए मजबूर कर देता है, बलशाली, हिम्मतवाला बना देता है और सबसे बड़ी बात कि वे आपकी कमियों को एक एक कर बता देता है। शत्रुओं से खतरा रहता है ।इसलिए शत्रुओं से दूर दूर तक कोई संबंध या संपर्क नहीं होना चाहिए। शत्रुओं को भी सम्मान करना चाहिए। शत्रुओं को थोड़ा सर पर चढ़ने दें,इससे वो उत्साहित होकर कुछ ऐसा गैर कानूनी काम कर बैठेगा कि उसे दबोचना आसान हो जाता है।वो अपने कुकृत्य का ऐसा छाप छोड़ देता है कि वही उसके गले की फांस बन जाती है।जब पूरी तरह गिरफ्त में आ जाये तो हिसाब किताब बराबर हो जायेगा। कोई मित्र से शत्रु व्यवहार से बन जाता है।शत्रु से मित्र बन सकता है लेकिन वो विश्वास योग्य नहीं होता है।एक बार कोई धोखा दे ,उस पर कभी विश्वास नहीं करना चाहिए, बल्कि कभी उससे दूर रहें।अगर अदावत गहरी है तो उसके घर कभी न जाएं और न अपने घर कभी आने दें, पानी भी भूलकर उसके यहां का न पिएं ,क्योंकि जान की खतरा हो सकती है। दुश्मनों - दोस्तों की भी कटेगरी होती है।दोनों में से कोई जो अपने पिता,भाई, परिवार का नहीं हो सकता है तो आप का वो खाक होगा। गुस्सेल व्यक्ति से हिंसक पशु की तरह दूरी बनाकर रखें।व्यभिचारी को घर के आसपास फटकने नहीं दें,घर में ले आने की बात ही दूर है।दुष्टों से कभी मदद न ले ,नही तो एकदिन आपकी सारी कमजोरी को जानकर आपको बेदखल कर देगा।अच्छा समय हो तो इतरायें नहीं,क्योंकि बुरे वक्त पर कोई आपके पास नहीं आएगा।रूप,यौवन,धन,पद, पावर का घमंड पतन कर देगा। रस्सी जल जाती है लेकिन ऐंठन नहीं छूटती है।यही स्वभाव शत्रुओं की होती है।
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