खाओ खूब रिश्वत की रोटी ( कविता ) -प्रसिद्ध यादव।
खाओ खूब रिश्वत की रोटी
कम परे तो बेच दो
अपनी माँ बहन बेटी।
भूखे पेट रहकर
पढ़ाये थे अविभावक
क्या पता, ये होंगे नालायक,
पढ़ने में कागज रिश्वत
करने में साइन रिश्वत
बनाने में बिल रिश्वत
भँजाने में चेक रिश्वत
चारो और गूंज रहे रिश्वत*******।
मत लो हाय गरीबों की,
उम्र हो जायेगी छोटी।
मत खाओ ****
रिश्वत को समझा मौलिक अधिकार,
नैतिकता हो गई तार-तार।
कमजोर को देते धक्के ,
माल बनाते मौके-बेमौके,
खाके खजाना चमड़ी हो गई मोटी।
मत खाओ******।
देखो बेईमानो के बंगले,
चमकती कारें,
स्वर्ण से भरा शरीर।
गुरुर में चूर ,
ना कोई सुरूर
इठला कर कहता-
क्या पाई है तक़दीर।
बातें करते बड़ी-बड़ी,
करनी कितनी खोटी।
खाओ मत . रिश्वत की रोटी।
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