आस्था के नाम पर जीवन से खिलवाड़ ! -प्रसिद्ध यादव।

 

   



आस्था वही तक ठीक है, जहां तक जीवन सुरक्षित रहे। आस्था के नाम पर जीवन को खतरे में डालना कोई बुद्धिमत्ता नही है। पर्व त्योहार में लोगों को घर आने की बेचैनी हो जाती है।नतीजा, यात्रियों के साथ कुछ न कुछ अनहोनी होते रहती है। कर्म ही पूजा है। कार्य स्थल से भी पूजा पाठ किया जा सकता है। भारतीय रेलवे त्योहारों में अनेक स्पेशल ट्रेन चलाती हैं फिर भी ट्रेन कम पड़ जाती है या लोगों को ऐसे ट्रेनों के बारे में सही सही जानकारी नहीं मिल पाती हैं।हालांकि रेलवे इसकी सूचना लगातार प्रेषित करते रहती है। एक साथ एक ही समय में लाखों लोगों को आने जाने की सुविधा मुहैया कराना रेलवे बस आदि की वश में नही है।  यात्रियों को खुद विवेक से काम लेना चाहिए। भेंड़, बकरियों की तरह ट्रेन की बोगियों में,बसों में यात्रा करना जान को जोख़िम में डालना ही है। एक या दो घण्टे की सफ़र तय करना हो तो जीवटता के साथ हो सकता है लेकिन 30 -35 घण्टे की सफ़र जानलेवा साबित हो सकता है।   सारण के जैतपुर थाना इलाके के तिवारी टोला निवासी मजदूर  32 वर्षीय दिनेश महतो  इंजन के बाद तीसरी जनरल बोगी में था। उसे सारण के एकमा स्टेशन पर उतरना था, मगर अपनी मंजिल तक पहुंचने से पहले भीड़ में उसका दम टूट गया। उसके पास से जनरल टिकट मिला है।  जनरल बोगी में अत्यधिक भीड़ के कारण उसे सांस लेने में परेशानी होने लगी थी। बिहार, यूपी के लोग खासकर मजदूर वर्ग पलायन के दंश झेल रहे हैं। बरसात के मौसम में अपने घर में काम नहीं मिलने के कारण दूसरे राज्यों में प्रवास करना पड़ता है। दीपावली ,छठ पर्व में लौटने का कारण घर पर काम धंधे भी होते हैं।धान की कटाई,रब्बी फसलों की बुआई का भी काम होता है और लग्न में शादी व्याह भी अपनों को करना होता है।  याद रखें जान है तो जहान है। सुरक्षित यात्रा करें ,भले ही पर्व त्योहार के बाद ही क्यों न आना पड़े।

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