भारत में प्रति व्यक्ति कर्ज 1लाख 9 हज़ार रुपये चिंताजनक !- प्रसिद्ध यादव।

 

    



   देश पर बढ़ते कर्ज चिंताजनक है। इतना कर्ज होने के बावजूद देश की आधारभूत संरचना में ज्यादा सुधार नहीं हो रहा है।सवाल है कि ये पैसे जा कहाँ रहा है? राजनीति रूप से केवल मुफ्तखोरी से देश का भला होने वाला नहीं है।सबसे बड़ी विडंबना है कि देश के 10 फीसदी लोगों के पास देश की 50 फ़ीसदी संपति है ।जहां इतनी बड़ी असमानता हो,अशिक्षा ,गरीबी,भुखमरी हो वो देश कैसे विकसित हो सकता है?  केवल धर्म के ध्वज फहराने से कुछ नहीं होगा, जब तक ठोस अर्थ नीति नहीं बनती।देश की आजादी के बाद से 2014 तक, भारत सरकार का कुल कर्ज ₹55 लाख करोड़ था। 2014 और 2023 के बीच, कुल कर्ज ₹55 लाख करोड़ से बढ़कर ₹155 लाख करोड़ हो गया है। प्रति व्यक्ति क्यों है मोदी सरकार आने के बाद से देश में कर्ज ₹43,000 से बढ़कर ₹1,09,000 हो गया है।सरकारी आंकड़ों में लेखा महानियंत्रक (सीजीए) की ओर ये जानकारी दी गई कि केंद्र सरकार का राजकोषीय घाटा चालू वित्त वर्ष के पहले पांच महीनों में 6.42 लाख करोड़ रुपये हो चुका है. पिछले साल की समान अवधि में सरकार का वित्तीय घाटा कुल बजट अनुमान का 32.6 फीसदी रहा था.  सीजीए ने अप्रैल-अगस्त 2023 में केंद्र सरकार के राजस्व-व्यय का आंकड़ा जारी करते हुए कहा कि चालू वित्त वर्ष के लिए नेट टैक्स रेवेन्यू 8.03 लाख करोड़ रुपये यानी बजट अनुमान का 34.5 फीसदी रहा. पिछले साल की समान अवधि में नेट टैक्स रेवेन्यू कलेक्शन 36.2 फीसदी था.वित्त वर्ष के पहले पांच महीनों में केंद्र सरकार का कुल खर्च 16.71 लाख करोड़ रुपये यानी बजट अनुमान का 37.1 फीसदी रहा. एक साल पहले खर्च बजट अनुमान का 35.2 फीसदी था. सरकार के कुल खर्च में से 12.97 लाख करोड़ रुपये राजस्व खाते और 3.73 लाख करोड़ रुपये पूंजी खाते में से हुए. भारत की साक्षरता दर विश्व की साक्षरता दर 84% से बेहद कम है। हालांकि देश में सर्व शिक्षा अभियान और साक्षर भारत के जरिए इस दिशा में सार्थक कदम उठाए जा रहे हैं। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार देश में साक्षरता दर 75.06 है। हालांकि वर्ष 1947 में यह महज 18 फीसदी थी। 

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