अब धीरे - धीरे घुँघटा सरकाइये सरकार !

 


जब तक तेरी बाहों में मेरी पनाह है तब तक मेरे हुश्न की जलवा है। तेरे हुश्न के दीवाने क्या शत्रु क्या मित्र ?दुनिया मुरीद है। मुस्कुराती इठलाती लाजो बोली - ऐसा भी क्या है हुजूर ? तू चंचला है, गतिमान है ,बहती झरना, सनसनाती हवा ... है। तुझे कोई स्थिर रखना चाहे तो असम्भव है। आखिर लाजो !ये गुण कहाँ से आया ? मेरा यही डीएनए है। मैं बड़ी नाज़ुक, छुईमुई ,कलमुई हूँ।मैं जरा सा असहज हो जाती हूँ तो फिर अपना ठिकाना बदल लेती हूं। इस बार घूंघट उठाने में कुछ ज्यादा शरमा रही है।क्या बात है? उधर से जल्दी पल्लू छोड़ ही नहीं रहा था। तेरे दर्द अभी गया नही है फिर भी अनायास मेरी बाहें तुझे आगोश में लेने के लिए बेचैन है।आइये! अब धीरे-  धीरे घुँघटा उठाइये सरकार !


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