रिश्तों में अपनापन ! - प्रसिद्ध यादव।
' का भौजी ? बड़का भईया, मंझला ,छोटका भईया ,पाहून , काका ,चाचा ,चाची ,काकी ,मौसी ,मामा, मामी ,दीदी ,फुआ, फूफा ,मेहमान जी ,भावज,जउत,साली ,बौआ के माय, बुनी के बाबू जेठ ,जेठानी ,देवर,देवरानी,बहु,सासू, ससुर ,नाना ,नानी ... 'ऐसे अनेक रिश्ते हैं, जिसे आज भी गांवों में नाम से नहीं इन रिश्तों से पुकारते हैं।इन रिश्तों में कितना अपनापन होता है। कितना मिठास लगता था लेकिन अब आधुनिक युग में पति पत्नी की और पत्नी पति के नाम से पुकारती है।यही हाल रिश्तों में भी हो गया है। कुछ रिश्ते का अर्थ भी नहीं मालूम होता है अब जैसे -संवासिन ,कुटुंबतारो , हिताई ,बहांजवाई ..आदि । शायद रिश्ते में कहने से शर्म महसूस होता है। यही से सम्बन्धों में रूखापन आने लगा है।आदमी की पहचान नाम से होने लगा, रिश्तों से नहीं। लोगों को पूछना पड़ता है कि ये रिश्ते में कौन लगते हैं। अब जीजा न कहकर लड़की बहन के नाम बोलकर उनके हसबैंड बोलती हैं। यही हाल लड़के का है वो भी भाभी भूलकर फलाने की वाईफ हैं ,बोलकर काम चलाती हैं। राजनीति के चापलूसी में अब नए नए रिश्ते आने लगे हैं ' गार्जियन ,हजूर ,साहेब ,सुप्रीमो , तारणहार .. आदि । अब रिश्तेदारी में चरणस्पर्श लुप्त हो रहा है, इसके जगह राजनीति में खूब हो रहा है। रिश्ते को रिश्ते के साथ बोलकर देखें ,बहुत सकूं मिलता है और अपनापन भी होता है।
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