लोकतंत्र पर धन हावी ! - प्रसिद्ध यादव।

   


चुनावी चंदे सिर्फ़ रुपये बनाने के लिए दिए जाते हैं।

राजनीति पार्टियों को चुनावी चंदे सिर्फ मनमानी लाभ कमाने के लिए ,टेंडर लेने के लिए एवम पिछले दरवाजे से राजनीति में आने के लिए दिए जाते हैं। 1 अरब 40 करोड़ जनता पर चंद पूंजीपति कैसे हावी है? कैसे चुनाव को प्रभावित कर रहे हैं? यह इलेक्ट्रोल बांड बता रहा है। जितने भी चंदे देने वाले हैं, उस पर सरकार किस कदर मेहरबान हुई ? यह  भी जांच का विषय है।सार्वजनिक क्षेत्र को निजी क्षेत्र में बदलकर कैसे चंदे देने वाले  कुंडली मारकर बैठा है?यह भी बताना चाहिए। आज भी देश में करोड़ों लोग फटेहाल जिंदगी जी रहे हैं।कुछ को छोड़ कोई एक रुपया का मदद करने वाले नहीं है।जरूरतमंद के लिए पूंजीपतियों की थैली की मुँह क्यों नहीं खुल रही है? ऐसे अरबों - खरबों के राजनीतिक दलों के सामने कोई गरीब व्यक्ति चुनाव लड़ने का साहस भी नहीं कर सकता है।क्या अब लोकतंत्र धन तंत्र बन गया है? आज पोर्ट ,एयरपोर्ट, रेल ,भेल,सेल सभी निजी हाथों में जा रहा है और देश के युवा इनके दरवारी बनने के लिए मजबूर हो रहे हैं। शिक्षा, स्वास्थ्य, निर्माण आदि पर पूंजीपतियों का दबदबा बढ़ रहा है।क्या लोकतांत्रिक समाजवादी देश की यही चरित्र है?

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