राजनीति दलों की दुर्गति का कारण कोर कार्यकर्ताओं की उपेक्षा !- प्रसिद्ध यादव।
टिकट बंटवारे में जो दल कार्यकर्ताओं की अपेक्षा के अनुरूप टिकट न देकर अपने वीटो पावर को दिखाता है, उस पार्टी की दुर्गति होने से कौन रोक सकता है? इंडिया गठबंधन में बिना सीट बंटवारे के टिकट देना यह धर्म का पालन नहीं है। टिकट भी दलबदलुओं को दिया जा रहा है और कार्यकर्ता मुँह ताक रहा है।नतीजा, कार्यकर्ता निराश होकर चुनाव में निष्क्रिय हो जाता है और परिणाम जीरो बट्टा सन्नाटा आता है। दल के नेता अपनी गलती को न देखकर चुनाव परिणाम बाद ईवीएम पर ठीकरा फोड़ते हैं। न किसी को धैर्य है ना ही किसी को कोई राजनीति धर्म है। अगर कोई प्रतिद्वंद्वी दल आरोप प्रत्यारोप लगता है तो यह पड़ताल करना चाहिए कि उसके आरोपों में कितना दम है।अगर आरोप सही है तो सम्भलने की जरूरत है न कि मौका देने की जरूरत है। विगत चुनाव में पाटलिपुत्र चुनाव में यही हुआ था, कोर कार्यकर्ता चुनाव में निष्क्रिय हो गए थे।इसके वजह को कोई भी जानने का प्रयास नहीं किया और कहीं ऐसा न हो कि इस बार भी पुनरावृत्ति हो जाये। पार्टी के टिकट बंटवारे में एकाधिकार बड़ी घातक साबित होता है।आखिर संसदीय बोर्ड क्यों बनाया जाता है?केवल खानापूर्ति के लिए। एक कि जिद जीती हुई बाजी हार जाती है और अभी यही कुछ होना बाकी है।
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