पाटलिपुत्र सांसद रामकृपाल 1719.63 करोड़ में मात्र 221.22करोड़ 12.86 फ़ीसदी ही फंड खर्च कर सके !

 



अपने संसद निधि को खर्च करने में कौन परेशानी है, यह समझ से परे हैं।आज भी गांवों में ,शहरों में छोटे छोटे कामों के अभाव में लोगों को समस्याएं हो रही हैं ।  सांसद लोग कम फंड मिलने का रोना रोते हैं लेकिन जो राशि मिलती है उसका 12 फीसदी तक खर्च करते करते 5 वर्ष कम पड़ जाते हैं, शेष 87.14 फ़ीसदी राशि क्या अचार डालेंगे ?  यह रवैया जनता के  विकास के प्रति उदासीनता नही तो और क्या है? बिहार में अपेक्षाकृत कम पहुंच-पहचान वालों की तुलना में बड़े नाम वाले सांसद इस निधि के उपयोग में अधिक संकोची निकले। केंद्रीय मंत्री आरके सिंह के कोटे से सबसे कम राशि खर्च हुई है। रामकृपाल यादव, चिराग पासवान, डॉ. संजय जायसवाल, रविशंकर प्रसाद, राधामोहन सिंह आदि इसी कड़ी में हैं। बिहार में एक सीट छोड़कर 39 सीटें एनडीए के हैं और 17 महीने छोड़कर शेष डबल इंजन की ही सरकार है।  क्षेत्र की जनता सांसदों से संसद निधि नहीं खर्च करने पर तीखी सवाल पूछ रहे हैं और जनप्रतिनिधि निरुत्तर हो जाते हैं।यही सवाल युवा रोजगार पर ,किसान अपने फसल की दुगनी आय पर ,गृहणी महंगाई पर ,छात्र महंगी होती शिक्षा व्यवस्था पर एनडीए सरकार को घेरे हुए हैं। सरकार केवल हिन्दू मुस्लिम व रामलला की बात कहकर पल्ला झाड़ रहे हैं। देश की मुख्य समस्याओं व मुद्दे पर सबकी बोलती बंद है।अगर यही मुद्दे, आक्रोश एवीम मशीन पर बटन दबाने तक जारी रहा तब क्या हश्र होगा?

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