समय के साथ मैं चलता गया । कौन है साथ ? कौन नहीं ?

  

कभी  परवाह न किया !

 समय के साथ मैं चलता गया ।

  कई फूलों के राहों पर चलते हैं

हमने  शूलों की राहों को चुना है ।

वो मांझी क्या ?

जो धाराओं के प्रतिकूल न चले  ।

अडिग रहने की दंश झेला है 

इसलिए अकेला है ।

चरणदास मत बन कभी किसी का 

अपनी पद चिन्ह को मिसाल बना 

शोर सुन मत घबरा 

शांति चित से मन रमा 

भगत सिंह की तरह 

शूली पर चढ़ जाना ठीक है

मांगकर माफ़ी , माफीवीर  गंवारा नहीं ।

कौन है किसके आदर्श ? 

यही से मालूम हो जाता है 

तू कौन है और क्या करेगा ?

ये न कहने की जरूरत है।

सब कुछ नहीं है राजमहल 

सत्ता सुख और ऊंची पकड़ 

हम जैसे भी हैं, अच्छे हैं 

सुखी रोटी खाकर 

सर उठाकर रहते हैं।

न हक किसी के मारते हैं 

न हक अपना छोड़ते हैं 

लड़ते नहीं हैं

पर चुप न बैठे रहते हैं

पड़ी जरूरत तो 

दो-  दो हाथ भी  करते हैं।

समय के साथ मैं चलता गया ।

कौन है साथ ? कौन नहीं ?

कभी परवाह न किया।


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