भारत में प्रति व्यक्ति आय की दृष्टि से अब भी 140 वीं पायदान पर और दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था !

   


इसका सीधा मतलब है कि भारत में विकास चंद मुट्ठीभर पूंजीपतियों की हो रही है बाकी लोगों की आर्थिक स्थिति बद से बदतर हो रही है। अगर भारत के मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की विकास दर 2050 तक भी सालाना 8 प्रतिशत रहती है और चीन 2022 के स्तर पर ही अटका रहता है, तो भी 2050 में भारत का निर्माण क्षेत्र चीन के 2022 के स्तर के बराबर नहीं पहुंच सकेगा.’

बड़े स्तर के उद्योगों की कमी की वजह से भारत की आधी आबादी अभी भी अपनी रोज़ी-रोटी के लिए खेती-बाड़ी के भरोसे है, जो दिन-ब-दिन घाटे का काम बनती जा रही है.

इसका सीधा नतीजा क्या हुआ है? भारत में लोगों के घरेलू बजट सिमट रहे हैं.

भारत में कुल निजी खपत के व्यय की विकास दर तीन प्रतिशत ही रही है, जो पिछले बीस सालों में सबसे कम है. ये वो रक़म है जो लोग सामान ख़रीदने में ख़र्च करते हैं.

वहीं, परिवारों पर क़र्ज़ का बोझ अपने रिकॉर्ड स्तर पर जा पहुंचा है. इसके उलट, एक नई रिसर्च के मुताबिक़ भारत में परिवारों की वित्तीय बचत अपने सबसे निचले स्तर तक गिर गई है.

बहुत से अर्थशास्त्रियों का कहना है कि महामारी के बाद भारत के आर्थिक विकास का मिज़ाज असमान या ‘K’ के आकार का रहा है. जिसमें अमीर लोग तो दिनों-दिन और अमीर होते जा रहे हैं. वहीं, ग़रीब लोग रोज़मर्रा की जद्दोजहद के शिकार हैं.

भले ही जीडीपी के मामले में भारत, दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है. लेकिन, प्रति व्यक्ति के नज़रिए से देखें, तो भारत अब भी 140वीं पायदान पर है.आखिर एक लोकतांत्रिक, कल्याणकारी राज्यों में पूंजीपति वर्ग इतना फलफूल रहे हैं और आम अवाम 5 किलो राशन की बाट जोह रहे हैं।


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