कौन है यहां अपना ? जिसके लिए झूठ बोला - (कविता ) - प्रसिद्ध यादव।
चोरी,लूट, डाका डाला
हुए भ्रष्ट,हत्यारा
मिटा न मन की तृष्णा।
कौन है अपना?
धन संग्रह की चाहत में
मानव से हुऐ दानव
न जाना भाई, सखा , परिवार
जन्मदाता को भी किया तिरष्कार
आखिर, तेरा है क्या सपना?
कौन है यहां अपना?
चंद पैसों के खातिर दरक गये रिश्ते
गुलजार बाग हुए विरान।
न होंठों पे हंसी , न दिल में प्यार
घर लगता हो गया शमशान।
दिन-रात पैसों की है रटना।
कौन है यहां अपना?
Comments
Post a Comment