ढक - महाढक! की सर्टिफिकेट बांटते बुद्धिजीवी ! ( व्यंग्य )
मैं बुद्धिजीवियों के खादान में रहता हूँ।यहां 24 कैरेट ,22 कैरेट से लेकर डायमंड मिल जाएंगे।तांबा ,लोहा अलग ठकठुक करते रहते हैं, मुझे उससे खास लगाव नही है।मैं डायमंड या 24 कैरेट सोना के साथ रहना पसंद करता हूँ। चूंकि मैं इस खदान का नया हिस्सा हूँ, इसलिए ज्यादा लबर - लबर करने से परहेज करता हूँ।फिर भी यदा - कदा मेरी जुबान खुल जाती है। इस खदान में कभी - कभी आयातित डायमंड आ जाते हैं, मैं बुरा नहीं मानता बल्कि कुछ गुण सीखने का प्रयास करता हूँ, अनुभव लेता हूँ। आज का प्रसंग आयातित डायमंड व मूल डायमंड के वार्तालाप पर आधारित है। -
" उ सब के सब ढक है ,उ पूरा गांव ही ढक है ,न कोई संस्कार है न तमीज़ "! ऐसे ही कुछ मुंहजबानी सर्टिफिकेट दे रहे थे एक अतिबुद्धिजीवी । खुद अपने आप को फिटनेस सर्टिफिकेट बाकी दुनिया अनफिट ।तथाकथित बुद्धिजीवी की संस्कारी भाषा " ढक - "महा ढक " कहते हैं। जब से आज आये उखड़े उखड़े हुए थे। मैं महाकवि कालिदास की बातों को अनुसरण करते हुए दो के बीच में नहीं टुभक्ते हैं।लेकिन हंसी बर्दाश्त नहीं होता था, मजबूरन बाहर निकलना पड़ता था। मामला बेटा के शादी करने की हो रही थी। वार्तालाप के इस अंश " जो सरकार बिजली ,पानी ,सड़क न दे ,वो सरकार बदलनी है।" से मुझे लगा वर उम्रदराज हैं तभी ये राजनीति स्लोगन दूसरे बुद्धिजीवी ने पहले वाले को सुना दिया।पहले वाले बुद्धिजीवी बिदक कर बोले - आप शादी के ठेका ले रखा है क्या ?नही होगी बंडा रहेगा ।" इतने में तीसरे सरकारी जाति के बुद्धिजीवी टुभक गये ,उन्हें भी " महा ढक " से अलंकृत किया। सभा लगी हुई थी लेकिन माहौल चर्मोत्कर्ष, चर्मोअनंद पर नही पहुंच रहा था। सभा के स्तम्भ बगल वाले बालू नापने वाले बुद्धिजीवी को कुछ कान में कह दिया।वो सीधे कुर्सी से उठकर तोप के मुहाने के पास बैठ गए और बोले - बेटवा के शादी कहीं सेट भईल की नाहीं!" इतना सुनते ही ,तोप फायर लिया " महा ढक इतनी देर से बात हो रही है ,अभी तक समझ में नहीं आयी कि शादी ठीक हुई कि नहीं।" दिराहे बुद्धिजीवी ने कटे पर नमक छिड़क दिया।
" ढक " शब्द का अर्थ -किसी आधान का वह अंग जो उसके मुंह पर उसे बंद करने के लिए रखा या कसा जाता है, ढकने की वस्तु, ढकना, वह वस्तु जिसको ऊपर डालने या रखने से कोई चीज़ दिखाई न पड़े. ढके-खुले. गुप्त रूप से या खुले तौर पर।इस वार्तालाप ढक शब्द का प्रयोग सेन्सलेस के अर्थ में हो रहा था।
हालांकि पहले बुद्धिजीवी दिल दिमाग के बुरे नहीं है, दरअसल बरसात में भींगने से हल्का बुखार ,खांसी से पीड़ित थे और यहाँ मन बहलाने आये थे लेकिन यहाँ लोग हंसने की टॉनिक समझकर इस्तेमाल कर दिया। ऐसे मान्यवर को यहां लोग बहुत सम्मान करते हैं लेकिन थोड़ी जी बहलाने के लिए ये सब होते रहता है।
डिस्क्लेमर -यह कहानी किसी के व्यक्तिगत रूप से नहीं है। अगर यह घटना किसी से मेल खाती है तो इसके लिए लेखक जिम्मेवार नहीं है। - प्रसिद्ध कुमार।
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